|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
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[[Category: शेर ]]
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'''चार शे’र'''
जब से इन्सान की अज़्मत<Ref>महानता</ref> पे ज़वाल<ref>पतन</ref> आया है
है हर इक बुत को ये दा’वा कि खुदा है जैसे
दिल को इस तरह से छूती है किसी हुस्न की याद
आरिज़े-गुल<ref>फूल का कपोल</ref> पे लबे-बादे-सबा<ref>पुरवा हवा के होंठ</ref> हो जैसे
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