भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
कभी खन्दाँख़न्दाँ,<ref>प्रसन्न</ref> कभी गिरियाँ,<ref>उदास</ref> कभी रक़्साँ <ref>नाचते हुए</ref> चलिए
दूर तक साथ तिरे, उम्रे-गुरेज़ाँ, चलिए
ज़ौके़ज़ौक़े-आराइशोआराइश-गुलकारिए-अश्केगुलकारी-ए-अश्क़-ए-ख़ूँ<ref>ख़ूँ ख़ून के आँसुओं की सजावट का शौक</ref> से
कोई भी फ़स्ल हो, फ़िरदौस-ब-दामाँ चलिए
रस्मे-देरिनःएदेरीनःए-आलम<ref>संसार की पुरानी प्रथा</ref> को बदलने के लिएरस्मे-देरीनःए-आलम से गुरेज़ाँ <ref>हटकर</ref> चलिए
आसमानों से बरसता है अँधेरा कैसा
लेके अब परचमे-ख़ुर्शीदे ज़र-अफ़शाँ चलिए
सर-ब-कफ़ क़फ़ चलने की आदत में न फ़र्क़ आ जाएकूचःए-दार में सरमस्तो-ग़ज़लख़्वाँ ग़ज़ल-ख़्वाँ चलिए
{{KKMeaning}}
</poem>