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"वह / अवतार एनगिल" के अवतरणों में अंतर

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हर् सुबह
 
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मुंह-अंधेरे  
 
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13:32, 6 नवम्बर 2009 का अवतरण

वह----
हर् सुबह
मुंह-अंधेरे
चूल्हे के साथ जलती है
दाल की देगची में
बुद-बुद उबलती है
खाने की मेज़ पर
तरल होकर ढलती है
सबको खिलाती है

वह----
हर दोपहर
न घिसने वाली काली शिला पर
सबके कपड़े धोती है
और बहते हुए पानी पर
चुपके से रोती है


वह----
शाम ढले
बच्चों के कपड़े इस्तरी करते हुए
छोटी-छोटी प्रार्थनाएं करती रहती है
कि निगोड़ी बिजली न चली जाए


ठीक उस समय
जब बच्चे
दूरदर्शन के विज्ञापनों में मग्न होते हैं

वह----
देर रात गये
चौके-बासन से निबटकर
हाथ पोंछते हुए
उसके बिस्तर तक जाती है
और नींद ओढ़ने से पहले
दो इस्पाती हथेलियों में
कैद हो जाती है ।