भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बहुत क़रीब हो तुम / अली सरदार जाफ़री" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{KKGlobal}}
+
{{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
 
|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
 +
|संग्रह=मेरा सफ़र / अली सरदार जाफ़री
 
}}
 
}}
 
{{KKCatNazm}}
 
{{KKCatNazm}}

13:36, 6 नवम्बर 2009 का अवतरण

{

बहुत करीब हो तुम, फिर भी मुझसे कितनी दूर
कि दिल कहीं है, नज़र है कहीं, कहीं तुम हो
वो जिसको पी न सकी मेरी शो’ला-आशामी१
वो कूज़ः-ए-शकर-ओ-जामे-अंगबीं२ तुम हो

मिरे मिज़ाज में आशुफ़्तगी३ सबा४ की है
मिली कली की अदा, गुल की तम्कनत५ तुमको
सबा की गोद में, फिर भी सबा से बेगाना
तमाम हुस्नो-हकी़क़त, तमाम अफ़साना

वफ़ा भी जिस पे है नाज़ाँ वो बेवफ़ा तुम हो
जो खो गयी है मिरे दिल की वो सदा तुम हो

बहुत क़रीब हो तुम, फिर भी मुझसे कितनी दूर
हिजाबे-जिस्म६ अभी है, हिजाबे-रूह७ अभी
अभी तो मंज़िले-सद-मिह्रो-माह८ बाक़ी है
हिजाबे-फ़ासिला-हाए-निगाह९ बाक़ी है
विसाले-यार अभी तक है आरज़ू का फ़रेब



१.अग्निज्वाला पीने की इच्छा २.मिठास से भरा प्याला और शहद से भरा प्याला ३.उद्विग्नता ४.समीर ५.अभिमान ६.शरीर की दूरी ७.आत्मा की दूरी ८.सैकड़ों सूर्य और चंद्रमाओं की मंज़िल ९.निगाहों की दूरियों का संकोच।