भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रुकी हुई हवा / अवतार एनगिल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=अवतार एनगिल
 
|रचनाकार=अवतार एनगिल
|संग्रह=अन्धे कहार / अवतार एनगिल
+
|संग्रह=अन्धे कहार / अवतार एनगिल; तीन डग कविता / अवतार एनगिल
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}

12:21, 7 नवम्बर 2009 का अवतरण

ऑपरेशन थिएटर की
पीली रोशनी तले
लेटी है
धानी बालों वाली एक लड़की
जिसकी दीप्त मेली आंखें
अनीस्थीज़िया से बन्द नहीं होतीं
और
हैरान है
ज़िन्दा बच्चियों पर
मौत के प्रयोग करने वाला
वैज्ञानिक चिकित्सक

अपने गिरवी रखे मस्तक पर
हाथ रखकर
सोचत है वैज्ञानिक
कि एक कमज़ोर लड़की
बेहोशी की दवा से
कैसे लड़ती है
कितना लड़ती है
क्योंकर लड़ती है
कोई नहीं जानता
न कोई जानेगा
शल्यशाला में
विशाल मेज़ पर लेटी
किसी महानस्वप्न में खोई
रुकी हुई हवा-जैसी यह लड़की
कौन है ?
क्योंकर इनकार करती होगी यह
बेहोश होने से
क्यों बहना चाहती है यह
दीवारों के आर-पार?

जब-जब बजा था अलार्म
भागे थे रक्षक
अस्पताल के चहुं ओर

और तब-तब धर दबोचा था
मुस्तैद सेवकों ने
इस खतरनाक रोगिणी को

आज फिर
शल्यशाला के द्वार पर
दिपदिपा रही है
एक लाल बत्ती
और अन्दर
हाथों पर दस्ताने चढ़ाकर
वैज्ञानिक चिकित्सक
रोकी गई हवा के जिस्म में
सुईयां भोंक रहा है