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21:48, 7 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

किताबें, रिसाले न अख़बार पढ़ना
मगर दिल को हर रात इक बार पढ़ना

सियासत की अपनी अलग इक ज़बाँ है
लिखा हो जो इक़रार, इनकार पढ़ना

अलामत नये शहर की है सलामत
हज़ारों बरस की ये दीवार पढ़ना

किताबें, किताबें, किताबें, किताबें
कभी तो वो आँखें, वो रुख़सार पढ़ना

मैं काग़ज की तक़दीर पहचानता हूँ
सिपाही को आता है तलवार पढ़ना

बड़ी पुरसुकूँ धूप जैसी वो आँखें
किसी शाम झीलों के उस पार पढ़ना

ज़बानों की ये ख़ूबसूरत इकाई
ग़ज़ल के परिन्दों का अशआर पढ़ना

(मई १९९८)