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"नासमझी / आकांक्षा पारे" के अवतरणों में अंतर

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बदलता रहा तुम तक जा कर
 
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11:59, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

मेरे कहने
तुम्हारे समझने के बीच
कब फ़ासला बढ़ता गया
मेरे हर कहने का अर्थ
बदलता रहा तुम तक जा कर

हर दिन
समझने-समझाने का यह खेल
हम दोनों को ही अब
बना गया है इतना नासमझ

कि
स्पर्श के मायने की
परिभाषा एक होने पर भी
नहीं समझते उसे
हम दोनों