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"चींटी / अशोक वाजपेयी" के अवतरणों में अंतर

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चीटियाँ इतिहास में नहीं होती :
 
चीटियाँ इतिहास में नहीं होती :
 
 
उनकी कतारें उसके भूगोल के आरपार फैल जाती हैं;
 
उनकी कतारें उसके भूगोल के आरपार फैल जाती हैं;
 
 
किसी चींटी अपनी नन्हीं सी काया पर  
 
किसी चींटी अपनी नन्हीं सी काया पर  
 
 
इतिहास की धूल पड़ने देती है ।  
 
इतिहास की धूल पड़ने देती है ।  
 
 
  
 
चींटियाँ सच की भी चिंता नहीं करतीं :  
 
चींटियाँ सच की भी चिंता नहीं करतीं :  
 
 
सच भी अपने व्यास में  
 
सच भी अपने व्यास में  
 
 
रेंग रही चींटी को शामिल करना ज़रूरी नहीं समझता ।  
 
रेंग रही चींटी को शामिल करना ज़रूरी नहीं समझता ।  
 
 
  
 
चींटी का समय लंबा न होता होगा :  
 
चींटी का समय लंबा न होता होगा :  
 
 
जितना होता है उसमें वह उस समय से परेशान होती है  
 
जितना होता है उसमें वह उस समय से परेशान होती है  
 
 
इसका कोई ज्ञात प्रमाण नहीं है ।  
 
इसका कोई ज्ञात प्रमाण नहीं है ।  
 
 
  
 
इतिहास, सच और समय से परे और उनके द्वारा अलक्षित  
 
इतिहास, सच और समय से परे और उनके द्वारा अलक्षित  
 
 
चींटी का जीवन फिर भी जीवन है :
 
चींटी का जीवन फिर भी जीवन है :
 
 
जिजीविषा से भरा-पूरा,  
 
जिजीविषा से भरा-पूरा,  
 
 
सिवाय इसके कि चींटी कभी नहीं गिड़गिड़ाती  
 
सिवाय इसके कि चींटी कभी नहीं गिड़गिड़ाती  
 
 
कि उसे कोई देखता नहीं, दर्ज नहीं करता  
 
कि उसे कोई देखता नहीं, दर्ज नहीं करता  
 
 
या कि अपने में शामिल नहीं करता ।  
 
या कि अपने में शामिल नहीं करता ।  
 
 
  
 
कवि की मुश्किल यह नहीं कि वह चींटी क्यों नहीं है  
 
कवि की मुश्किल यह नहीं कि वह चींटी क्यों नहीं है  
 
 
बल्कि यह कि शायद वह है,  
 
बल्कि यह कि शायद वह है,  
 
 
लेकिन न लोग उसे रहने देते हैं,  
 
लेकिन न लोग उसे रहने देते हैं,  
 
 
न इतिहास, सच या समय ।
 
न इतिहास, सच या समय ।
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18:06, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

चीटियाँ इतिहास में नहीं होती :
उनकी कतारें उसके भूगोल के आरपार फैल जाती हैं;
किसी चींटी अपनी नन्हीं सी काया पर
इतिहास की धूल पड़ने देती है ।

चींटियाँ सच की भी चिंता नहीं करतीं :
सच भी अपने व्यास में
रेंग रही चींटी को शामिल करना ज़रूरी नहीं समझता ।

चींटी का समय लंबा न होता होगा :
जितना होता है उसमें वह उस समय से परेशान होती है
इसका कोई ज्ञात प्रमाण नहीं है ।

इतिहास, सच और समय से परे और उनके द्वारा अलक्षित
चींटी का जीवन फिर भी जीवन है :
जिजीविषा से भरा-पूरा,
सिवाय इसके कि चींटी कभी नहीं गिड़गिड़ाती
कि उसे कोई देखता नहीं, दर्ज नहीं करता
या कि अपने में शामिल नहीं करता ।

कवि की मुश्किल यह नहीं कि वह चींटी क्यों नहीं है
बल्कि यह कि शायद वह है,
लेकिन न लोग उसे रहने देते हैं,
न इतिहास, सच या समय ।