"कलाकार का गीत / रामावतार त्यागी" के अवतरणों में अंतर
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
}} | }} | ||
− | इस सदन में मैं अकेला ही | + | इस सदन में मैं अकेला ही दिया हूं<br> |
मत बुझाओ!<br><br> | मत बुझाओ!<br><br> | ||
पंक्ति 45: | पंक्ति 45: | ||
मैं न रोऊं¸ तो शिला कैसे गलेगी!<br> | मैं न रोऊं¸ तो शिला कैसे गलेगी!<br> | ||
− | इस सदन में मैं अकेला ही | + | इस सदन में मैं अकेला ही दिया हूं<br><br> |
18:44, 6 दिसम्बर 2006 का अवतरण
रचना संदर्भ | रचनाकार: | रामावतार त्यागी | |
पुस्तक: | प्रकाशक: | ||
वर्ष: | पृष्ठ संख्या: |
इस सदन में मैं अकेला ही दिया हूं
मत बुझाओ!
जब मिलेगी रोशनी मुझसे मिलेगी!
पांव तो मेरे थकन ने छील डाले,
अब विचारों के सहारे चल रहा हूं,
आंसुओं से जन्म दे–देकर हंसी को,
एक मंदिर के दीए–सा जल रहा हूं,
मैं जहां धर दूं कदम, वह राजपथ है
मत मिटाओ!
पांव मेरे, देखकर दुनिया चलेगी!
बेबसी, मेरे अधर इतने न खोलो,
जो कि अपना मोल बतलाता फिरूं मैं,
इस कदर नफ़रत न बरसाओ नयन से,
प्यार को हर गांव दफ़नाता फिरूं मैं,
एक अंगारा गरम मैं ही बचा हूं
मत बुझाओ!
जब जलेगी, आरती मुझसे जलेगी!
जी रहे हो जिस कला का नाम लेकर
कुछ पता भी है कि वह कैसे बची है
सभ्यता की जिस अटारी पर खड़े हो,
वह हमीं बदनाम लोगों ने रची है,
मैं बहारों का अकेला वंशधर हूं
मत सुखाओ!
मैं खिलूंगा तब नयी बगिया खिलेगी!
शाम ने सबके मुखों पर रात मल दी,
मैं जला हूं¸ तो सुबह लाकर बुझूंगा,
ज़िंदगी सारी गुनाहों में बिताकर,
जब मरूंगा¸ देवता बनकर पुजूंगा,
आंसुओं को देखकर मेरी हंसी तुम–
मत उड़ाओ!
मैं न रोऊं¸ तो शिला कैसे गलेगी!
इस सदन में मैं अकेला ही दिया हूं