भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वापसी / अशोक वाजपेयी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=कहीं नहीं वहीं / अशोक वाजपेयी
 
|संग्रह=कहीं नहीं वहीं / अशोक वाजपेयी
 
}}  
 
}}  
 +
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 +
जब हम वापस आयेंगे
 +
तो पहचाने न जायेंगे-
 +
हो सकता है हम लौटें
 +
पक्षी की तरह
 +
और तुम्हारी बगिया के किसी नीम पर बसेरा करें
 +
फिर जब तुम्हारे बरामदे के पंखे के ऊपर
 +
घोंसला बनायें
 +
तो तुम्हीं हमें बार-बार बरजो-
  
जब हम वापस आयेंगे<br>
+
या फिर थोड़ी सी बारिश के बाद
तो पहचाने न जायेंगे-<br>
+
तुम्हारे घर के सामने छा गयी हरियाली
हो सकता है हम लौटें<br>
+
की तरह वापस आयें हम
पक्षी की तरह<br>
+
जिससे राहत और सुख मिलेगा तुम्हें
और तुम्हारी बगिया के किसी नीम पर बसेरा करें<br>
+
पर तुम जान नहीं पाओगे कि
फिर जब तुम्हारे बरामदे के पंखे के ऊपर<br>
+
उस हरियाली में हम छिटके हुए हैं।
घोंसला बनायें<br>
+
तो तुम्हीं हमें बार-बार बरजो-<br><br>
+
  
या फिर थोड़ी सी बारिश के बाद<br>
+
हो सकता है हम आयें
तुम्हारे घर के सामने छा गयी हरियाली<br>
+
पलाश के पेड़ पर नयी छाल की तरह
की तरह वापस आयें हम<br>
+
जिसे फूलों की रक्तिम चकाचौंध में
जिससे राहत और सुख मिलेगा तुम्हें<br>
+
तुम लक्ष्य भी नहीं कर पाओगे।
पर तुम जान नहीं पाओगे कि<br>
+
उस हरियाली में हम छिटके हुए हैं।<br><br>
+
  
हो सकता है हम आयें<br>
+
हम रूप बदलकर आयेंगे
पलाश के पेड़ पर नयी छाल की तरह<br>
+
तुम बिना रूप बदले भी
जिसे फूलों की रक्तिम चकाचौंध में<br>
+
बदल जाओगे-
तुम लक्ष्य भी नहीं कर पाओगे।<br><br>
+
  
हम रूप बदलकर आयेंगे<br>
+
हालाँकि घर, बगिया, पक्षी-चिड़िया,
तुम बिना रूप बदले भी<br>
+
हरियाली-फूल-पेड़, वहीं रहेंगे
बदल जाओगे-<br><br>
+
हमारी पहचान हमेशा के लिए गड्डमड्ड कर जायेगा
 
+
वह अन्त
हालाँकि घर, बगिया, पक्षी-चिड़िया,<br>
+
जिसके बाद हम वापस आयेंगे
हरियाली-फूल-पेड़, वहीं रहेंगे<br>
+
और पहचाने न जायेंगे।
हमारी पहचान हमेशा के लिए गड्डमड्ड कर जायेगा<br>
+
</poem>
वह अन्त<br>
+
जिसके बाद हम वापस आयेंगे<br>
+
और पहचाने न जायेंगे।<br>
+

18:31, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

जब हम वापस आयेंगे
तो पहचाने न जायेंगे-
हो सकता है हम लौटें
पक्षी की तरह
और तुम्हारी बगिया के किसी नीम पर बसेरा करें
फिर जब तुम्हारे बरामदे के पंखे के ऊपर
घोंसला बनायें
तो तुम्हीं हमें बार-बार बरजो-

या फिर थोड़ी सी बारिश के बाद
तुम्हारे घर के सामने छा गयी हरियाली
की तरह वापस आयें हम
जिससे राहत और सुख मिलेगा तुम्हें
पर तुम जान नहीं पाओगे कि
उस हरियाली में हम छिटके हुए हैं।

हो सकता है हम आयें
पलाश के पेड़ पर नयी छाल की तरह
जिसे फूलों की रक्तिम चकाचौंध में
तुम लक्ष्य भी नहीं कर पाओगे।

हम रूप बदलकर आयेंगे
तुम बिना रूप बदले भी
बदल जाओगे-

हालाँकि घर, बगिया, पक्षी-चिड़िया,
हरियाली-फूल-पेड़, वहीं रहेंगे
हमारी पहचान हमेशा के लिए गड्डमड्ड कर जायेगा
वह अन्त
जिसके बाद हम वापस आयेंगे
और पहचाने न जायेंगे।