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"अन्त के बाद-2 / अशोक वाजपेयी" के अवतरणों में अंतर
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− | + | न आत्मा का अँधेरा विषाद, | |
− | + | न प्रेम का सूर्यस्मरण। | |
− | + | न थोड़े से दूध की हलकी सी चाय, | |
− | + | न बटनों के आकार से | |
− | सिर्फ अन्त होगा। | + | छोटे बन गये काजों की झुँझलाहट। |
− | न देह का चकित चन्द्रोदय, | + | न शब्दों के पंचवृक्ष, |
− | न आत्मा का अँधेरा विषाद, | + | न मौन की पुष्करिणी, |
− | न प्रेम का सूर्यस्मरण। | + | न अधेड़ दुष्टताएँ होंगी |
− | न थोड़े से दूध की हलकी सी चाय, | + | न वनप्रान्तर में नीरव गिरते नीलपंख। |
− | न बटनों के आकार से | + | न निष्प्रभ देवता होंगे, |
− | छोटे बन गये काजों की झुँझलाहट। | + | न पताकाएँ फहरते लफंगे। |
− | न शब्दों के पंचवृक्ष, | + | अन्त के बाद |
− | न मौन की पुष्करिणी, | + | हमारे लिए कुछ नहीं होगा- |
− | न अधेड़ दुष्टताएँ होंगी | + | उन्हीं के लिए सब होगा |
− | न वनप्रान्तर में नीरव गिरते नीलपंख। | + | जिनके लिए अन्त नहीं होगा। |
− | न निष्प्रभ देवता होंगे, | + | अन्त के बाद |
− | न पताकाएँ फहरते लफंगे। | + | सिर्फ |
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18:33, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
अन्त के बाद
कुछ नहीं होगा
न वापसी
न रूपान्तर
न फिर कोई आरंभ।
अन्त के बाद
सिर्फ अन्त होगा।
न देह का चकित चन्द्रोदय,
न आत्मा का अँधेरा विषाद,
न प्रेम का सूर्यस्मरण।
न थोड़े से दूध की हलकी सी चाय,
न बटनों के आकार से
छोटे बन गये काजों की झुँझलाहट।
न शब्दों के पंचवृक्ष,
न मौन की पुष्करिणी,
न अधेड़ दुष्टताएँ होंगी
न वनप्रान्तर में नीरव गिरते नीलपंख।
न निष्प्रभ देवता होंगे,
न पताकाएँ फहरते लफंगे।
अन्त के बाद
हमारे लिए कुछ नहीं होगा-
उन्हीं के लिए सब होगा
जिनके लिए अन्त नहीं होगा।
अन्त के बाद
सिर्फ
अन्त होगा,
हमारे लिए।