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"अन्त के बाद-1 / अशोक वाजपेयी" के अवतरणों में अंतर

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बहेंगे हवा बनकर,<br>
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हम चुपचाप नहीं बैठेंगे।<br>
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18:34, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

अन्त के बाद
हम चुपचाप नहीं बैठेंगे।

फिर झगड़ेंगे,
फिर खोजेंगे,
फिर सीमा लाँघेंगे

क्षिति जल पावक
गगन समीर से
फिर कहेंगे-
चलो
हमको रूप दो,
आकर दो !

वही जो पहले था
वही-
जिसके बारे में
अन्त को भ्रम है
कि उसने सदा के लिए मिटा दिया।

अन्त के बाद
हम समाप्त नहीं होंगे-
यहीं जीवन के आसपास
मँडरायेंगे-
यहीं खिलेंगे गन्ध बनकर,
बहेंगे हवा बनकर,
छायेंगे स्मृति बनकर।

अन्तत:
हम अन्त को बरकाकर
फिर यहीं आयेंगे-
अन्त के बाद
हम चुपचाप नहीं बैठेंगे।