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"जब-तब / अशोक वाजपेयी" के अवतरणों में अंतर
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जब सारे अपमान झर गए | जब सारे अपमान झर गए |
18:39, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
जब सारे अपमान झर गए
जब मुरझा गईं सारी इच्छाएँ,
जब गली में आगे जाने की जगह न रही—
तब वह उदारचरित देवता आया
बीत गए जीवन की गाथा से
कुछ चरित्र, कुछ घटनाएँ वापस लाकर
उनकी धूल-मैल साफ़ कर
उन्हें उपहारों की तरह उजला बनाते हुए।