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"शनिवार / असद ज़ैदी" के अवतरणों में अंतर

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ख़रीद रहा था हिंदी के उस प्रतापी अख़बार को<br>
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मैंने देना चाहा उसको एक मोटी गाली
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लड़का भी जानता था कि
सनी महाराज!<br><br>
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पहली ज़्यादती उसी की थी
दिमाग सुन्न ऐनक फिसली जेब में रखे सिक्के खनके<br>
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और यह कि खतरा अब टल गया
मैंने देना चाहा उसको एक मोटी गाली<br>
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इतनी मोटी कि सबको दिखाई दे गई<br><br>
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कहाँ के हो? मैंने दिखावटी रुखाई से पूछा
लड़का भी जानता था कि<br>
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पहली ज़्यादती उसी की थी<br>
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और यह कि खतरा अब टल गया<br><br>
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ये शनि महाराज कौन हैं?
कहाँ के हो? मैंने दिखावटी रुखाई से पूछा<br>
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उसने कहा-- का पतौ... !
और वो कम्बख़्त मेरा हमवतन निकला<br><br>
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इसके बाद मैंने छोड़ दी व्यापक राष्ट्रीय हित की चिंता
ये शनि महाराज कौन हैं?<br>
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और हिंदी भाषा का मोह
उसने कहा-- का पतौ... !<br><br>
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भेंट किए तीनों सिक्के उस बदमाश लड़के को.
इसके बाद मैंने छोड़ दी व्यापक राष्ट्रीय हित की चिंता<br>
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और हिंदी भाषा का मोह<br>
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भेंट किए तीनों सिक्के उस बदमाश लड़के को.<br>
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18:57, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

सुबह-सुबह जब मैं रास्ते में रुककर फ़ुटफाथ पर झुककर
ख़रीद रहा था हिंदी के उस प्रतापी अख़बार को
किसी धातु के काले पत्तर की
तेल से चुपड़ी एक आकृति दिखाकर
एक बदतमीज़ बालक मेरे कान के पास चिल्लाया--
सनी महाराज!

दिमाग सुन्न ऐनक फिसली जेब में रखे सिक्के खनके
मैंने देना चाहा उसको एक मोटी गाली
इतनी मोटी कि सबको दिखाई दे गई

लड़का भी जानता था कि
पहली ज़्यादती उसी की थी
और यह कि खतरा अब टल गया

कहाँ के हो? मैंने दिखावटी रुखाई से पूछा
और वो कम्बख़्त मेरा हमवतन निकला

ये शनि महाराज कौन हैं?
उसने कहा-- का पतौ... !
इसके बाद मैंने छोड़ दी व्यापक राष्ट्रीय हित की चिंता
और हिंदी भाषा का मोह
भेंट किए तीनों सिक्के उस बदमाश लड़के को.