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"मरूं तो मैं किसी चेहरे में रंग भर जाऊं / अहमद नदीम क़ासमी" के अवतरणों में अंतर

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मरूँ तो मैं किसी चेहरे में रंग भर जाऊँ|
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नदीम! काश यही एक काम कर जाऊँ|
  
मरूं तो मैं किसी चेहरे में रंग भर जाऊं|<br>
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ये दश्त-ए-तर्क-ए-मुहब्बत ये तेरे क़ुर्ब की प्यास,
नदीम! काश यही एक काम कर जाऊं|<br><br>
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जो इज़ाँ हो तो तेरी याद से गुज़र जाऊँ|
  
ये दश्त-ए-तर्क-ए-मुहब्बत ये तेरे क़ुर्ब की प्यास,<br>
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मेरा वजूद मेरी रूह को पुकारता है,
जो इज़ां हो तो तेरी याद से गुज़र जाऊं|<br><br>
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तेरे जमाल का परतो है सब हसीनों पर
तेरी तरफ़ भी चलूं तो ठहर ठहर जाऊं|<br><br>
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कहाँ कहाँ तुझे ढूंढूँ किधर किधर जाऊँ|
  
तेरे जमाल का परतो है सब हसीनों पर<br>
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मैं ज़िन्दा था कि तेरा इन्तज़ार ख़त्म न हो,
कहां कहां तुझे ढूंढूं किधर किधर जाऊं|<br><br>
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जो तू मिला है तो अब सोचता हूं मर जाऊं|<br><br>
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तुझे क़रीब जो पाऊँ तो ख़ुद से डर जाऊँ|
  
ये सोचता हूं कि मैं बुत-परस्त क्यूं न हुआ,<br>
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किसी चमन में बस इस ख़ौफ़ से गुज़र न हुआ,
तुझे क़रीब जो पाऊं तो ख़ुद से डर जाऊं|<br><br>
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किसी कली पे न भूले से पाँव धर जाऊँ|
  
किसी चमन में बस इस ख़ौफ़ से गुज़र न हुआ,<br>
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ये जी में आती है, तख़्लीक़-ए-फ़न के लम्हों में,
किसी कली पे न भूले से पांव धर जाऊं|<br><br>
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कि ख़ून बन के रग-ए-संग में उतर जाऊँ|
 
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ये जी में आती है, तख़्लीक़-ए-फ़न के लम्हों में,<br>
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कि ख़ून बन के रग-ए-संग में उतर जाऊं|<br><br>
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19:39, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

मरूँ तो मैं किसी चेहरे में रंग भर जाऊँ|
नदीम! काश यही एक काम कर जाऊँ|

ये दश्त-ए-तर्क-ए-मुहब्बत ये तेरे क़ुर्ब की प्यास,
जो इज़ाँ हो तो तेरी याद से गुज़र जाऊँ|

मेरा वजूद मेरी रूह को पुकारता है,
तेरी तरफ़ भी चलूं तो ठहर ठहर जाऊँ|

तेरे जमाल का परतो है सब हसीनों पर
कहाँ कहाँ तुझे ढूंढूँ किधर किधर जाऊँ|

मैं ज़िन्दा था कि तेरा इन्तज़ार ख़त्म न हो,
जो तू मिला है तो अब सोचता हूँ मर जाऊँ|

ये सोचता हूं कि मैं बुत-परस्त क्यूँ न हुआ,
तुझे क़रीब जो पाऊँ तो ख़ुद से डर जाऊँ|

किसी चमन में बस इस ख़ौफ़ से गुज़र न हुआ,
किसी कली पे न भूले से पाँव धर जाऊँ|

ये जी में आती है, तख़्लीक़-ए-फ़न के लम्हों में,
कि ख़ून बन के रग-ए-संग में उतर जाऊँ|