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[[Category:ग़ज़ल]]
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हैरतों के सिल-सिले सोज़-ए-निहां तक आ गए
हम तो दिल तक चाहते थे तुम तो जाँ तक आ गए
हैरतों के सिल-सिले सोज़-ए-निहां तक आ गए<BR>ज़ुल्फ़ में ख़ुश्बू न थी या रंग आरिज़ में न थाहम तो दिल तक चाहते थे तुम तो जाँ आप किस की जुस्तजू में गुलिस्तां तक आ गए<BR><BR>
ज़ुल्फ़ में ख़ुश्बू न थी या रंग आरिज़ में न था<BR>ख़ुद तुम्हें चाक-ए-गिरेबां का शऊर आ जाएगाआप किस की जुस्तजू में गुलिस्तां तुम वहां तक आ तो जाओ हम जहां तक आ गए<BR><BR>
ख़ुद तुम्हें चाक-ए-गिरेबां का शऊर आ जाएगा<BR>तुम वहां तक आ तो जाओ हम जहां तक आ गए<BR><BR> उन की पलकों पे सितारे अपने होंठों पे हंसी<BR>कि़स्सा-ए-ग़म कहते कहते हम यहां तक आ गए<BR><BR/poem>
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