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"कहा था किस ने के अह्द-ए-वफ़ा करो उससे / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
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− | कहा था किसने के अहद-ए-वफ़ा करो उससे | + | कहा था किसने के अहद-ए-वफ़ा करो उससे |
− | जो यूँ किया है तो फिर क्यूँ गिला करो उससे | + | जो यूँ किया है तो फिर क्यूँ गिला करो उससे |
− | ये अह्ल-ए-बज़ तुनक हौसला सही फिर भी | + | ये अह्ल-ए-बज़ तुनक हौसला सही फिर भी |
− | ज़रा फ़साना-ए-दिल इब्तिदा करो उससे | + | ज़रा फ़साना-ए-दिल इब्तिदा करो उससे |
− | ये क्या के तुम ही ग़म-ए-हिज्र के फ़साने कहो | + | ये क्या के तुम ही ग़म-ए-हिज्र के फ़साने कहो |
− | कभी तो उसके बहाने सुना करो उससे | + | कभी तो उसके बहाने सुना करो उससे |
− | नसीब फिर कोई तक़्रीब-ए-क़र्ब हो के न हो | + | नसीब फिर कोई तक़्रीब-ए-क़र्ब हो के न हो |
− | जो दिल में हों वही बातें किया करो उससे | + | जो दिल में हों वही बातें किया करो उससे |
− | "फ़राज़" तर्क-ए-त'अल्लुक़ तो ख़ैर क्या होगा | + | "फ़राज़" तर्क-ए-त'अल्लुक़ तो ख़ैर क्या होगा |
− | यही बहुत है के कम कम मिला करो उससे | + | यही बहुत है के कम कम मिला करो उससे |
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20:12, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
कहा था किसने के अहद-ए-वफ़ा करो उससे
जो यूँ किया है तो फिर क्यूँ गिला करो उससे
ये अह्ल-ए-बज़ तुनक हौसला सही फिर भी
ज़रा फ़साना-ए-दिल इब्तिदा करो उससे
ये क्या के तुम ही ग़म-ए-हिज्र के फ़साने कहो
कभी तो उसके बहाने सुना करो उससे
नसीब फिर कोई तक़्रीब-ए-क़र्ब हो के न हो
जो दिल में हों वही बातें किया करो उससे
"फ़राज़" तर्क-ए-त'अल्लुक़ तो ख़ैर क्या होगा
यही बहुत है के कम कम मिला करो उससे