भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जुज़ तेरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
}}
 
}}
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 +
<poem>
 +
जुज़ तेरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे
 +
तू कहाँ है मगर ऐ दोस्त पुराने मेरे
  
 +
तू भी ख़ुश्बू है मगर मेरा तजस्सुस बेकार
 +
बर्क़-ए-आवारा की मानिन्द ठिखाने मेरे
  
जुज़ तेरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे <br>
+
शमा कि लौ थी के वो तू था मगर हिज्र की रात  
तू कहाँ है मगर ऐ दोस्त पुराने मेरे <br><br>
+
देर तक रोता रहा कोई सिरहाने मेरे  
  
तू भी ख़ुश्बू है मगर मेरा तजस्सुस बेकार <br>
+
ख़ल्क़ की बेख़बरी है के मेरी रुसवाई
बर्क़-ए-आवारा की मानिन्द ठिखाने मेरे <br><br>
+
लोग मुझ को ही सुनाते हैं फ़साने मेरे  
  
शमा कि लौ थी के वो तू था मगर हिज्र की रात <br>
+
लुट के भी ख़ुश हूँ के अश्कों से भरा है दामन
देर तक रोता रहा कोई सिरहाने मेरे <br><br>
+
देख ग़ारतगरे दिल ये भी ख़ज़ाने मेरे  
  
ख़ल्क़ की बेख़बरी है के मेरी रुसवाई <br>
+
आज इक और बरस बीत गया उस के बग़ैर
लोग मुझ को ही सुनाते हैं फ़साने मेरे <br><br>
+
जिस के होते हुए होते थे ज़माने मेरे  
  
लुट के भी ख़ुश हूँ के अश्कों से भरा है दामन <br>
+
काश तू भी मेरी आवाज़ सुनता हो
देख ग़ारतगरे दिल ये भी ख़ज़ाने मेरे <br><br>
+
फिर पुकारे है तुझे दिल की सदा ने मेरे  
  
आज इक और बरस बीत गया उस के बग़ैर <br>
+
काश तू भी कभी आजाये मसीहाई को
जिस के होते हुए होते थे ज़माने मेरे <br><br>
+
लोग आते हैं बहुत दिल को दुखाने मेरे  
  
काश तू भी मेरी आवाज़ सुनता हो <br>
+
काश औरों की तरह मैं भी कह सकता
फिर पुकारे है तुझे दिल की सदा ने मेरे <br><br>
+
बात सुन ली है मेरी आज ख़ुदा ने मेरे  
  
काश तू भी कभी आजाये मसीहाई को <br>
+
तू है किस हाल में ऐ ज़ूदफ़रामोश मेरे
लोग आते हैं बहुत दिल को दुखाने मेरे <br><br>
+
मुझको तो छीन लिया अहद-ए-वफ़ा ने मेरे  
  
काश औरों की तरह मैं भी कह सकता <br>
+
चारागर यूँ तो बहुत हैं मगर ऐ जान-ए-"फ़राज़"  
बात सुन ली है मेरी आज ख़ुदा ने मेरे <br><br>
+
जुज़ तेरे और कोई ग़म न जाने मेरे  
 
+
</poem>
तू है किस हाल में ऐ ज़ूदफ़रामोश मेरे <br>
+
मुझको तो छीन लिया अहद-ए-वफ़ा ने मेरे <br><br>
+
 
+
चारागर यूँ तो बहुत हैं मगर ऐ जान-ए-"फ़राज़" <br>
+
जुज़ तेरे और कोई ग़म न जाने मेरे <br><br>
+

20:23, 8 नवम्बर 2009 का अवतरण

जुज़ तेरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे
तू कहाँ है मगर ऐ दोस्त पुराने मेरे

तू भी ख़ुश्बू है मगर मेरा तजस्सुस बेकार
बर्क़-ए-आवारा की मानिन्द ठिखाने मेरे

शमा कि लौ थी के वो तू था मगर हिज्र की रात
देर तक रोता रहा कोई सिरहाने मेरे

ख़ल्क़ की बेख़बरी है के मेरी रुसवाई
लोग मुझ को ही सुनाते हैं फ़साने मेरे

लुट के भी ख़ुश हूँ के अश्कों से भरा है दामन
देख ग़ारतगरे दिल ये भी ख़ज़ाने मेरे

आज इक और बरस बीत गया उस के बग़ैर
जिस के होते हुए होते थे ज़माने मेरे

काश तू भी मेरी आवाज़ सुनता हो
फिर पुकारे है तुझे दिल की सदा ने मेरे

काश तू भी कभी आजाये मसीहाई को
लोग आते हैं बहुत दिल को दुखाने मेरे

काश औरों की तरह मैं भी कह सकता
बात सुन ली है मेरी आज ख़ुदा ने मेरे

तू है किस हाल में ऐ ज़ूदफ़रामोश मेरे
मुझको तो छीन लिया अहद-ए-वफ़ा ने मेरे

चारागर यूँ तो बहुत हैं मगर ऐ जान-ए-"फ़राज़"
जुज़ तेरे और कोई ग़म न जाने मेरे