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"यही कहा था मेरे हाथ में है आईना / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
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− | गलत था अब के तेरी आंधियों का तखमीना | + | ये ज़ख्म खाईयो सर पर ब-पासे-दस्ते-सुबू |
− | ये ज़ख्म खाईयो सर पर ब-पासे-दस्ते-सुबू | + | वो संगे-मोहतसिब आया, बचाईयो मीना |
− | वो संगे-मोहतसिब आया, बचाईयो मीना | + | |
− | हमें भी हिज़्र का दुख है ना कुर्ब की ख्वाहिश | + | हमें भी हिज़्र का दुख है ना कुर्ब की ख्वाहिश |
− | सुनो की भूल चुके हम भी अहदे- पारीना | + | सुनो की भूल चुके हम भी अहदे- पारीना |
− | उस एक शख्स की सज-धज गजब की थी फ़राज | + | |
− | मैं देखता था उसे, देखता था आईना | + | उस एक शख्स की सज-धज गजब की थी फ़राज |
+ | मैं देखता था उसे, देखता था आईना | ||
नाबीना - अन्धा, हम नसब - बराबर वाला, ब-पासे-दस्ते-सुबू - हाथ के जाम को बचाते हुए<br> | नाबीना - अन्धा, हम नसब - बराबर वाला, ब-पासे-दस्ते-सुबू - हाथ के जाम को बचाते हुए<br> | ||
संगे-मोहतसिब - धर्माधिकारी का पत्थर, अहदे-पारीना - पुराना वचन, पुराना युग.<br> | संगे-मोहतसिब - धर्माधिकारी का पत्थर, अहदे-पारीना - पुराना वचन, पुराना युग.<br> | ||
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20:55, 8 नवम्बर 2009 का अवतरण
यही कहा था मेरे हाथ में है आईना
तो मुझपे टूट पड़ा सारा शहर नाबीना
मेरे चिराग तो सूरज के हम-नसब निकले
गलत था अब के तेरी आंधियों का तखमीना
ये ज़ख्म खाईयो सर पर ब-पासे-दस्ते-सुबू
वो संगे-मोहतसिब आया, बचाईयो मीना
हमें भी हिज़्र का दुख है ना कुर्ब की ख्वाहिश
सुनो की भूल चुके हम भी अहदे- पारीना
उस एक शख्स की सज-धज गजब की थी फ़राज
मैं देखता था उसे, देखता था आईना
नाबीना - अन्धा, हम नसब - बराबर वाला, ब-पासे-दस्ते-सुबू - हाथ के जाम को बचाते हुए
संगे-मोहतसिब - धर्माधिकारी का पत्थर, अहदे-पारीना - पुराना वचन, पुराना युग.