भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सम्पूर्णता / आग्नेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=आग्नेय
 
|रचनाकार=आग्नेय
|संग्रह=मेरे बाद मेरा घर / आग्नेय
+
|संग्रह=मेरे बाद मेरा घर / आग्नेय; लौटता हूँ उस तक / आग्नेय
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}

11:21, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

वह आकाश की ओर
देखती रही
जबकि मैं उसके निकट
छाया की तरह लिपटा था,
उसका हाथ
दूसरी स्त्री के कन्धे पर था,
जबकि मैं उसके चारों ओर
हवा की तरह ठहरा था,
भरी-पूरी स्त्री का भरा-पूरा प्यार
अन्तिम इच्छा की तरह जी लेने के लिए
मैं उसे हरदम
पल्लवित और फलवती
पृथ्वी की सम्पूर्णता की तरह
रचता रहूंगा