भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आह!! / राजीव रंजन प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<poem>भुच्च काला …)
 
(कोई अंतर नहीं)

17:38, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

भुच्च काला
पसलियों सना सीना
और बेहद फूला पेट
बिलकुल नंगा
वह, उस अखबार पर की जूठन
चाट रहा है
जिसपर अमेरिका के झंडे की फोटो
लहराती हुई छपी है
कसरती बदन वाले बुश साहब
मुस्कुराते दिखते हैं।
रेडियो में दूर कहीं बज रहा है
सारी दुनियाँ का बोझ हम उठाते हैं
अखबार में छपा है
हिन्दुस्तानी ज्यादा खाते हैं
और सारी दुनियाँ
इसी से भूखों मर रही है..

उसका फूला हुआ पेट
बिलकुल ग्लोब की तरह दिखता है
और नाक भौं सिकोडते
उस विदेशी सैलानी के आगे
हाँथ फैलाये खडा अब
भूखे होने का इशारा करता
नादान!! नहीं जानता
कि कोई कोंडलिसा ‘राईस’ नहीं देती..

बाजार मे भीड है
वह मूढ नावाकिफ है
कि भारत एक बडा बाजार है
उसे चिंता भी नहीं
तन पर एसा कोई चीथडा नहीं
जिसमें जेब हो
उसका फैला हुआ हाँथ
अब तक खाली है..

द्रौपदी का पात्र
एक दाने से जगत को तृप्त करता था
नादान ने वह कीमती दाना निगल लिया है
उसे भी पचता नहीं है
बुश को भी नहीं
और दुनिया भूखी मर रही है
आह...

19.05.2008



अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज बुश की इस टिप्पणी के बाद कि "दुनियाँ में भुखमरी इस लिये है कि हिन्दुस्तानी ज्यादा खाते हैं"।