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"इक बार कहो तुम मेरी हो / इब्ने इंशा" के अवतरणों में अंतर
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हम घूम चुके बस्ती-बन में | हम घूम चुके बस्ती-बन में | ||
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इक आस का फाँस लिए मन में | इक आस का फाँस लिए मन में | ||
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कोई साजन हो, कोई प्यारा हो | कोई साजन हो, कोई प्यारा हो | ||
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कोई दीपक हो, कोई तारा हो | कोई दीपक हो, कोई तारा हो | ||
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जब जीवन-रात अंधेरी हो | जब जीवन-रात अंधेरी हो | ||
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इक बार कहो तुम मेरी हो | इक बार कहो तुम मेरी हो | ||
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जब सावन-बादल छाए हों | जब सावन-बादल छाए हों | ||
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जब फागुन फूल खिलाए हों | जब फागुन फूल खिलाए हों | ||
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जब चंदा रूप लुटाता हो | जब चंदा रूप लुटाता हो | ||
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जब सूरज धूप नहाता हो | जब सूरज धूप नहाता हो | ||
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या शाम ने बस्ती घेरी हो | या शाम ने बस्ती घेरी हो | ||
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इक बार कहो तुम मेरी हो | इक बार कहो तुम मेरी हो | ||
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हाँ दिल का दामन फैला है | हाँ दिल का दामन फैला है | ||
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क्यों गोरी का दिल मैला है | क्यों गोरी का दिल मैला है | ||
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हम कब तक पीत के धोखे में | हम कब तक पीत के धोखे में | ||
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तुम कब तक दूर झरोखे में | तुम कब तक दूर झरोखे में | ||
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कब दीद से दिल की सेरी हो | कब दीद से दिल की सेरी हो | ||
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इक बार कहो तुम मेरी हो | इक बार कहो तुम मेरी हो | ||
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क्या झगड़ा सूद-ख़सारे का | क्या झगड़ा सूद-ख़सारे का | ||
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ये काज नहीं बंजारे का | ये काज नहीं बंजारे का | ||
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सब सोना रूपा ले जाए | सब सोना रूपा ले जाए | ||
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सब दुनिया, दुनिया ले जाए | सब दुनिया, दुनिया ले जाए | ||
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तुम एक मुझे बहुतेरी हो | तुम एक मुझे बहुतेरी हो | ||
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इक बार कहो तुम मेरी हो | इक बार कहो तुम मेरी हो | ||
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दीद=दर्शन; सेरी=तॄप्ति; सूद-ख़सारे=लाभ-हानि | दीद=दर्शन; सेरी=तॄप्ति; सूद-ख़सारे=लाभ-हानि | ||
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18:58, 9 नवम्बर 2009 का अवतरण
हम घूम चुके बस्ती-बन में
इक आस का फाँस लिए मन में
कोई साजन हो, कोई प्यारा हो
कोई दीपक हो, कोई तारा हो
जब जीवन-रात अंधेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो
जब सावन-बादल छाए हों
जब फागुन फूल खिलाए हों
जब चंदा रूप लुटाता हो
जब सूरज धूप नहाता हो
या शाम ने बस्ती घेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो
हाँ दिल का दामन फैला है
क्यों गोरी का दिल मैला है
हम कब तक पीत के धोखे में
तुम कब तक दूर झरोखे में
कब दीद से दिल की सेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो
क्या झगड़ा सूद-ख़सारे का
ये काज नहीं बंजारे का
सब सोना रूपा ले जाए
सब दुनिया, दुनिया ले जाए
तुम एक मुझे बहुतेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो
दीद=दर्शन; सेरी=तॄप्ति; सूद-ख़सारे=लाभ-हानि
(रचनाकाल : )