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"रात के ख्वाब सुनाएं किस को रात के ख्वाब सुहाने थे / इब्ने इंशा" के अवतरणों में अंतर

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रात के ख्वाब सुनाए किस को रात के ख्वाब सुहाने थे|
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रात के ख्वाब सुनाए किस को रात के ख्वाब सुहाने थे|<br>
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जिद्दी वहशी अल्हड़ चंचल मीठे लोग रसीले लोग,
धुंधले धुंधले चेहरे थे पर सब जाने पहचाने थे|<br><br>
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होंठ उन के ग़ज़लों के मिसरे आंखों में अफ़साने थे|
  
जिद्दी वहशी अल्हड़ चंचल मीठे लोग रसीले लोग,<br>
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ये लड़की तो इन गलियों में रोज़ ही घूमा करती थी,
होंठ उन के ग़ज़लों के मिसरे आंखों में अफ़साने थे|<br><br>
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इस से उन को मिलना था तो इस के लाख बहाने थे|
  
ये लड़की तो इन गलियों में रोज़ ही घूमा करती थी,<br>
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हम को सारी रात जगाया जलते बुझते तारों ने,
इस से उन को मिलना था तो इस के लाख बहाने थे|<br><br>
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हम क्यूं उन के दर पे उतरे कितने और ठिकाने थे|
  
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वहशत की उन्वान हमारी इन में से जो नार बनी,
हम क्यूं उन के दर पे उतरे कितने और ठिकाने थे|<br><br>
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देखेंगे तो लोग कहेंगे 'इन्शा' जी दीवाने थे|
 
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वहशत की उन्वान हमारी इन में से जो नार बनी,<br>
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देखेंगे तो लोग कहेंगे 'इन्शा' जी दीवाने थे|<br><br>
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19:15, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

रात के ख्वाब सुनाए किस को रात के ख्वाब सुहाने थे|
धुंधले धुंधले चेहरे थे पर सब जाने पहचाने थे|

जिद्दी वहशी अल्हड़ चंचल मीठे लोग रसीले लोग,
होंठ उन के ग़ज़लों के मिसरे आंखों में अफ़साने थे|

ये लड़की तो इन गलियों में रोज़ ही घूमा करती थी,
इस से उन को मिलना था तो इस के लाख बहाने थे|

हम को सारी रात जगाया जलते बुझते तारों ने,
हम क्यूं उन के दर पे उतरे कितने और ठिकाने थे|

वहशत की उन्वान हमारी इन में से जो नार बनी,
देखेंगे तो लोग कहेंगे 'इन्शा' जी दीवाने थे|