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"मेरी बेटी / इब्बार रब्बी" के अवतरणों में अंतर

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मेरी बेटी बनती है
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मैडम
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फूटे बरसाती मेज़ कुर्सी पलंग पर
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नाक पर रख चश्मा सरकाती
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(जो वहाँ नहीं है)
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मोहन
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कुमार
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शैलेश
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सुप्रिया
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कनक
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को डाँटती
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ख़ामोश रहो
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चीख़ती
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डपटती
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कमरे में चक्कर लगाती है
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अकड़ कर
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फ़्राक के कोने को
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टेढ़े-मेढ़े साइन बनाती
  
मेरी बेटी बनती है<br>
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वह तरसती है
मैडम<br>
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माँ पिता और मास्टरनी बनने को
बच्चों को डांटती जो दीवार है<br>
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और मैं बच्चा बनना चाहता हूँ
फूटे बरसाती मेज़ कुर्सी पलंग पर<br>
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बेटी की गोद में गुड्डे-सा
नाक पर रख चश्मा सरकाती<br>
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जहाँ कोई मास्टर न हो!
(जो वहां नहीं है)<br>
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मोहन<br>
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कुमार<br>
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शैलेश<br>
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सुप्रिया<br>
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कनक<br>
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को डांटती<br>
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वह तरसती है<br>
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रचनाकाल : 21.08.1983
मां पिता और मास्टरनी बनने को<br>
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और मैं बच्चा बनना चाहता हूं<br>
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बेटी की गोद में गुड्डे सा<br>
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जहां कोई मास्टर न हो!
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19:22, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

मेरी बेटी बनती है
मैडम
बच्चों को डाँटती जो दीवार है
फूटे बरसाती मेज़ कुर्सी पलंग पर
नाक पर रख चश्मा सरकाती
(जो वहाँ नहीं है)
मोहन
कुमार
शैलेश
सुप्रिया
कनक
को डाँटती
ख़ामोश रहो
चीख़ती
डपटती
कमरे में चक्कर लगाती है
हाथ पीछे बांधे
अकड़ कर
फ़्राक के कोने को
साड़ी की तरह सम्हालती
कापियाँ जाँचती
वेरी पुअर
गुड
कभी वर्क हार्ड
के फूल बरसाती
टेढ़े-मेढ़े साइन बनाती

वह तरसती है
माँ पिता और मास्टरनी बनने को
और मैं बच्चा बनना चाहता हूँ
बेटी की गोद में गुड्डे-सा
जहाँ कोई मास्टर न हो!

रचनाकाल : 21.08.1983