भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तुम्हारा नाम / इला कुमार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sneha.kumar (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=ठहरा हुआ एहसास / इला कुमार | |संग्रह=ठहरा हुआ एहसास / इला कुमार | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
− | + | <poem> | |
लिखा, मिटाया | लिखा, मिटाया | ||
− | |||
फिर लिखा, फिर मिटाया, | फिर लिखा, फिर मिटाया, | ||
− | |||
पता नहीं कितनी बार | पता नहीं कितनी बार | ||
− | |||
नंगी चट्टान की इस रुखी कठोर छाती पर | नंगी चट्टान की इस रुखी कठोर छाती पर | ||
− | |||
तुम्हारा नाम | तुम्हारा नाम | ||
− | |||
वही नाम | वही नाम | ||
− | |||
जो हमारे बीच के स्वप्निल पलों के बीच पला, | जो हमारे बीच के स्वप्निल पलों के बीच पला, | ||
− | |||
संबंधों के गुलाबी दायरों के बीच दौड़ा | संबंधों के गुलाबी दायरों के बीच दौड़ा | ||
− | |||
आंखो के जादू में समाया समाया, | आंखो के जादू में समाया समाया, | ||
− | |||
आखिर एक दिन | आखिर एक दिन | ||
− | |||
किसी नाजुक से समय में मेरे होठों से फिसल पड़ा था, | किसी नाजुक से समय में मेरे होठों से फिसल पड़ा था, | ||
− | |||
और तुमने सदा-सदा के लिए उसे अपने लिए सहेज लिया था | और तुमने सदा-सदा के लिए उसे अपने लिए सहेज लिया था | ||
− | |||
वही नाम | वही नाम | ||
− | |||
जो आज तुम्हारे लिए है, | जो आज तुम्हारे लिए है, | ||
− | |||
शायद इसलिए ही इतना प्यारा है | शायद इसलिए ही इतना प्यारा है | ||
+ | </poem> |
19:41, 9 नवम्बर 2009 का अवतरण
{KKGlobal}}
लिखा, मिटाया
फिर लिखा, फिर मिटाया,
पता नहीं कितनी बार
नंगी चट्टान की इस रुखी कठोर छाती पर
तुम्हारा नाम
वही नाम
जो हमारे बीच के स्वप्निल पलों के बीच पला,
संबंधों के गुलाबी दायरों के बीच दौड़ा
आंखो के जादू में समाया समाया,
आखिर एक दिन
किसी नाजुक से समय में मेरे होठों से फिसल पड़ा था,
और तुमने सदा-सदा के लिए उसे अपने लिए सहेज लिया था
वही नाम
जो आज तुम्हारे लिए है,
शायद इसलिए ही इतना प्यारा है