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"मेरा सपना / इला कुमार" के अवतरणों में अंतर

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बड़े ऊँचे से उस पहाड़ के शिखर पर
 
बड़े ऊँचे से उस पहाड़ के शिखर पर
 
 
वो हल्का नीला, बताओ तो मकान है किसका
 
वो हल्का नीला, बताओ तो मकान है किसका
 
 
मुझे पता है...
 
मुझे पता है...
 
 
वो मकान है जिसका...
 
वो मकान है जिसका...
 
  
 
बड़े प्यार से उसने देखा था इक सपना
 
बड़े प्यार से उसने देखा था इक सपना
 
 
सहेजा उसे हथेलियों के बीच
 
सहेजा उसे हथेलियों के बीच
 
 
ज्यों तूफानी रातों में, मोमबत्ती की लौ को बचाए कोई
 
ज्यों तूफानी रातों में, मोमबत्ती की लौ को बचाए कोई
 
 
हर ईट खुद से रखवाई
 
हर ईट खुद से रखवाई
 
 
हर दीवार उसने रंगवाई
 
हर दीवार उसने रंगवाई
 
 
बड़े दुलार से
 
बड़े दुलार से
 
 
कि, जब बड़ी होगी उसकी लाड़ली
 
कि, जब बड़ी होगी उसकी लाड़ली
 
 
हवाएं उसे सहलायेंगी, घटाएं दुलारेंगी
 
हवाएं उसे सहलायेंगी, घटाएं दुलारेंगी
 
 
जवानी की देहलीज में वो जब प्यार से कदम रक्खेगी  
 
जवानी की देहलीज में वो जब प्यार से कदम रक्खेगी  
 
  
 
लंबे-लंबे बालों को लहराकर
 
लंबे-लंबे बालों को लहराकर
 
 
सुनहरी बाहों को फैलाकर  
 
सुनहरी बाहों को फैलाकर  
 
 
कब वो गुनगुनाएगी
 
कब वो गुनगुनाएगी
 
 
तो
 
तो
 
 
शायद यहाँ स्वर्ग ही उतर आए
 
शायद यहाँ स्वर्ग ही उतर आए
 
 
किन्ही आँखों में
 
किन्ही आँखों में
 
 
हां,
 
हां,
 
 
आज जब कोमल कली-सी
 
आज जब कोमल कली-सी
 
 
अपनी बाहें फैलाती है बादलों को थामने के लिए...
 
अपनी बाहें फैलाती है बादलों को थामने के लिए...
 
 
ममा पपा मानों लहरों को तौलते हैं आंखो में अपने
 
ममा पपा मानों लहरों को तौलते हैं आंखो में अपने
 
  
 
काश,
 
काश,
 
 
पुरे हो सभी के सपने यूं
 
पुरे हो सभी के सपने यूं
 
 
झुलाए बाहों में परियां हमें ज्यूं
 
झुलाए बाहों में परियां हमें ज्यूं
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19:41, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

बड़े ऊँचे से उस पहाड़ के शिखर पर
वो हल्का नीला, बताओ तो मकान है किसका
मुझे पता है...
वो मकान है जिसका...

बड़े प्यार से उसने देखा था इक सपना
सहेजा उसे हथेलियों के बीच
ज्यों तूफानी रातों में, मोमबत्ती की लौ को बचाए कोई
हर ईट खुद से रखवाई
हर दीवार उसने रंगवाई
बड़े दुलार से
कि, जब बड़ी होगी उसकी लाड़ली
हवाएं उसे सहलायेंगी, घटाएं दुलारेंगी
जवानी की देहलीज में वो जब प्यार से कदम रक्खेगी

लंबे-लंबे बालों को लहराकर
सुनहरी बाहों को फैलाकर
कब वो गुनगुनाएगी
तो
शायद यहाँ स्वर्ग ही उतर आए
किन्ही आँखों में
हां,
आज जब कोमल कली-सी
अपनी बाहें फैलाती है बादलों को थामने के लिए...
ममा पपा मानों लहरों को तौलते हैं आंखो में अपने

काश,
पुरे हो सभी के सपने यूं
झुलाए बाहों में परियां हमें ज्यूं