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"जगदगुरु / इला कुमार" के अवतरणों में अंतर
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विस्तृत खोखल पर | विस्तृत खोखल पर | ||
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अपने पद चिन्हों को उकेरते | अपने पद चिन्हों को उकेरते | ||
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ओ दिव्य पुरुष, | ओ दिव्य पुरुष, | ||
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तुझे नमस्कार! | तुझे नमस्कार! | ||
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सैकडों योजन लंबी रश्मियों की ये बाहें | सैकडों योजन लंबी रश्मियों की ये बाहें | ||
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आओ, | आओ, | ||
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छू लो मुझे | छू लो मुझे | ||
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मेरे चेहरे को, वजूद को | मेरे चेहरे को, वजूद को | ||
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घेर मुझे अपरिवर्तित अवगुंठन के जादू से, | घेर मुझे अपरिवर्तित अवगुंठन के जादू से, | ||
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सारे परिवेश को रौशन कर दो | सारे परिवेश को रौशन कर दो | ||
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नई आशाओं के प्रवाह से | नई आशाओं के प्रवाह से | ||
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भर दो मेरे मन में सपनीली किरणों का जाल | भर दो मेरे मन में सपनीली किरणों का जाल | ||
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उन्मीलित हो उठे स्वप्नों का छंद खिले उठे दबी | उन्मीलित हो उठे स्वप्नों का छंद खिले उठे दबी | ||
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ढंकी कामना | ढंकी कामना | ||
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तुमने जैसे पाया अद्भुतचरित का संधान | तुमने जैसे पाया अद्भुतचरित का संधान | ||
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बताओ | बताओ | ||
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जगद्गुरु ! | जगद्गुरु ! | ||
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मुझे | मुझे | ||
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उसी पथ की बात | उसी पथ की बात | ||
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कैसे करना होगा स्वयं अपने से ही | कैसे करना होगा स्वयं अपने से ही | ||
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इस 'स्व' का परित्राण | इस 'स्व' का परित्राण | ||
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19:43, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
विस्तृत खोखल पर
अपने पद चिन्हों को उकेरते
ओ दिव्य पुरुष,
तुझे नमस्कार!
सैकडों योजन लंबी रश्मियों की ये बाहें
आओ,
छू लो मुझे
मेरे चेहरे को, वजूद को
घेर मुझे अपरिवर्तित अवगुंठन के जादू से,
सारे परिवेश को रौशन कर दो
नई आशाओं के प्रवाह से
भर दो मेरे मन में सपनीली किरणों का जाल
उन्मीलित हो उठे स्वप्नों का छंद खिले उठे दबी
ढंकी कामना
तुमने जैसे पाया अद्भुतचरित का संधान
बताओ
जगद्गुरु !
मुझे
उसी पथ की बात
कैसे करना होगा स्वयं अपने से ही
इस 'स्व' का परित्राण