भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जाना तय है / इला कुमार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इला कुमार |संग्रह= किन्हीं रात्रियों मे / इला कुमार }} श...)
 
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह= किन्हीं रात्रियों मे / इला कुमार
 
|संग्रह= किन्हीं रात्रियों मे / इला कुमार
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 
+
<poem>
 
शाम होते ही लौट आई हूँ
 
शाम होते ही लौट आई हूँ
 
 
चिडियों से होड़ लगाकर  
 
चिडियों से होड़ लगाकर  
 
  
 
वहां खाना और पानी नहीं है
 
वहां खाना और पानी नहीं है
 
 
बुभु क्षा या तितीर्षा का नामोनिशान नहीं  
 
बुभु क्षा या तितीर्षा का नामोनिशान नहीं  
 
  
 
आकाश न जाने किसकी छाया के अन्दर उनींदा रहता है
 
आकाश न जाने किसकी छाया के अन्दर उनींदा रहता है
 
 
उख की अदम्य लालसा अनवरत खीचती हुई  
 
उख की अदम्य लालसा अनवरत खीचती हुई  
 
 
उतनी दूर जाकर सुख कहाँ पाऊँगी
 
उतनी दूर जाकर सुख कहाँ पाऊँगी
 
  
 
निर्धूम ज्योति अभी भी अनंत कालखंडों की दुरी पर
 
निर्धूम ज्योति अभी भी अनंत कालखंडों की दुरी पर
 
 
हजारों साल पहले वेफ प्रतिबिम्बों टेल दबी हुई  
 
हजारों साल पहले वेफ प्रतिबिम्बों टेल दबी हुई  
 
  
 
बीच का समय शुन्य में मिला हुआ
 
बीच का समय शुन्य में मिला हुआ
 
  
 
जाना तय है
 
जाना तय है
 +
</poem>

19:52, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

शाम होते ही लौट आई हूँ
चिडियों से होड़ लगाकर

वहां खाना और पानी नहीं है
बुभु क्षा या तितीर्षा का नामोनिशान नहीं

आकाश न जाने किसकी छाया के अन्दर उनींदा रहता है
उख की अदम्य लालसा अनवरत खीचती हुई
उतनी दूर जाकर सुख कहाँ पाऊँगी

निर्धूम ज्योति अभी भी अनंत कालखंडों की दुरी पर
हजारों साल पहले वेफ प्रतिबिम्बों टेल दबी हुई

बीच का समय शुन्य में मिला हुआ

जाना तय है