"एक दिन / इला कुमार" के अवतरणों में अंतर
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एक दिन वह अकेला बैठा | एक दिन वह अकेला बैठा | ||
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रचता था आकाशों के बीच अवस्थित | रचता था आकाशों के बीच अवस्थित | ||
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अपने संसार के तंतुओं को | अपने संसार के तंतुओं को | ||
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हलकी सुन गुनाहट ओ के बीच | हलकी सुन गुनाहट ओ के बीच | ||
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कौंधती है आवाज निशब्द बहसों की | कौंधती है आवाज निशब्द बहसों की | ||
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कौन? | कौन? | ||
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कौन कहता है ऐसी अद्भुत कथा | कौन कहता है ऐसी अद्भुत कथा | ||
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संबंधो के प्रयाग की | संबंधो के प्रयाग की | ||
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वीरोचित चंदन की तह के भीतर से उठती हैं आकुल आवाजें | वीरोचित चंदन की तह के भीतर से उठती हैं आकुल आवाजें | ||
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पत्थर की खुचरन सी ठंडी और बेजान | पत्थर की खुचरन सी ठंडी और बेजान | ||
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जल की धारा थम गई | जल की धारा थम गई | ||
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नकार दिया उसने बहते जाने का गुण | नकार दिया उसने बहते जाने का गुण | ||
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पूर्ण चैतन्य हवा की संजीवनी लहर वहीँ थिर गई | पूर्ण चैतन्य हवा की संजीवनी लहर वहीँ थिर गई | ||
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आकाश ने त्याग दिया | आकाश ने त्याग दिया | ||
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अपने विस्तृतता के एकात्म लयित गुण को | अपने विस्तृतता के एकात्म लयित गुण को | ||
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कण-कण में वेष्ठित आकाश | कण-कण में वेष्ठित आकाश | ||
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सघन अभेद्यता के पार टिका रह गया | सघन अभेद्यता के पार टिका रह गया | ||
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निश्चल पड़ा रहा वायु का महमहाता झकोरा | निश्चल पड़ा रहा वायु का महमहाता झकोरा | ||
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थमी हुई नदी की | थमी हुई नदी की | ||
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कठोर अबेधता के पार | कठोर अबेधता के पार | ||
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रुके रहे रीते पात्र | रुके रहे रीते पात्र | ||
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पंचभूतों के धैर्यित गुणों पर हावी | पंचभूतों के धैर्यित गुणों पर हावी | ||
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इस अनिश्चित घबड़ाहट और व्यथा से अब | इस अनिश्चित घबड़ाहट और व्यथा से अब | ||
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रचनी है एक निर्द्वान्दता | रचनी है एक निर्द्वान्दता | ||
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सीने के अन्दर हिलती रही एक साँस | सीने के अन्दर हिलती रही एक साँस | ||
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19:54, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
एक दिन वह अकेला बैठा
रचता था आकाशों के बीच अवस्थित
अपने संसार के तंतुओं को
हलकी सुन गुनाहट ओ के बीच
कौंधती है आवाज निशब्द बहसों की
कौन?
कौन कहता है ऐसी अद्भुत कथा
संबंधो के प्रयाग की
वीरोचित चंदन की तह के भीतर से उठती हैं आकुल आवाजें
पत्थर की खुचरन सी ठंडी और बेजान
जल की धारा थम गई
नकार दिया उसने बहते जाने का गुण
पूर्ण चैतन्य हवा की संजीवनी लहर वहीँ थिर गई
आकाश ने त्याग दिया
अपने विस्तृतता के एकात्म लयित गुण को
कण-कण में वेष्ठित आकाश
सघन अभेद्यता के पार टिका रह गया
निश्चल पड़ा रहा वायु का महमहाता झकोरा
थमी हुई नदी की
कठोर अबेधता के पार
रुके रहे रीते पात्र
पंचभूतों के धैर्यित गुणों पर हावी
इस अनिश्चित घबड़ाहट और व्यथा से अब
रचनी है एक निर्द्वान्दता
सीने के अन्दर हिलती रही एक साँस