भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दूर क्षितिज तक / इसाक अश्क" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
{{KKCatNavgeet}} | {{KKCatNavgeet}} | ||
− | <poem> | + | <poem> |
दूर क्षितिज तक | दूर क्षितिज तक | ||
टेसू वन में बिना धुएँ की | टेसू वन में बिना धुएँ की |
20:15, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
दूर क्षितिज तक
टेसू वन में बिना धुएँ की
आग लगाए हैं।
हवा
हवा में पंख तौल-
इतराती है,
रात
रात भर जाने क्या-क्या
गाती है,
रस की
प्रलय-बाढ में जैसे
सब डूबे-उतराए हैं।
पत्ते
नृत्य-कथा का
मंचन करते हैं,
धूल
शशि पर फूल
बाँह में भरते हैं,
मौसम ही
यह नहीं दृष्टि भर
पाहन तक मदिराए हैं।