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उलझन / महादेवी वर्मा

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अलि कैसे उनको पाऊँ?
:::जिसमें उनको कण कण में
:::ढूँढूँ पहिचान न पाऊँ।
सोते सागर की धड़कन--
बन, लहरों की थपकी से;
अपनी यह करुण कहानी,
जिसमें उनको न सुनाऊँ।
:::वे तारक बालाओं की,
:::अपलक चितवन बन आते;
:::जिसमें उनकी छाया भी,
:::मैं छू न सकूँ अकुलाऊँ।
</poem>
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