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"तुम्हारी कविता / आभा बोधिसत्त्व" के अवतरणों में अंतर

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तुम्हारी कविता से जानती हूँ
 
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तुम्हारे बारे में
 
तुम्हारे बारे में
 
 
तुम सोचते क्या हो ,
 
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कैसा बदलाव चाहते हो
 
कैसा बदलाव चाहते हो
 
 
किस बात से होते हो आहत;
 
किस बात से होते हो आहत;
 
 
किस बात से खुश
 
किस बात से खुश
 
  
 
तुम्हारा कोई बायोडटा नहीं मेरे पास
 
तुम्हारा कोई बायोडटा नहीं मेरे पास
 
 
फिर भी जानती हूँ मैं
 
फिर भी जानती हूँ मैं
 
 
तुम्हें तुम्हारी कविताओं से
 
तुम्हें तुम्हारी कविताओं से
 
  
 
क्या यह बडी़ बात नही कि
 
क्या यह बडी़ बात नही कि
 
 
नहीं जानती तुम्हारा देश ,
 
नहीं जानती तुम्हारा देश ,
 
 
तुम्हारी भाषा तुम्हारे लोग
 
तुम्हारी भाषा तुम्हारे लोग
 
 
मैं कुछ भी नहीं जानती ,
 
मैं कुछ भी नहीं जानती ,
 
 
फिर भी कितना कुछ जानती हूँ
 
फिर भी कितना कुछ जानती हूँ
 
 
तुम्हारे बारे में
 
तुम्हारे बारे में
 
  
 
तुम्हारे घर के पास एक
 
तुम्हारे घर के पास एक
 
 
जगल है
 
जगल है
 
 
उस में एक झाड़ी
 
उस में एक झाड़ी
 
 
है अजीब
 
है अजीब
 
 
जिस में लगता है
 
जिस में लगता है
 
 
एक चाँद-फल रोज
 
एक चाँद-फल रोज
 
 
जिसके नीचे रोती है
 
जिसके नीचे रोती है
 
 
विधवाएँ रात भर
 
विधवाएँ रात भर
 
 
दिन भर माँजती है
 
दिन भर माँजती है
 
 
घरों के बर्तन
 
घरों के बर्तन
 
 
बुहारती हैं आकाश मार्ग
 
बुहारती हैं आकाश मार्ग
 
 
कि कब आएगा तारन हार
 
कि कब आएगा तारन हार
 
 
ऐसे ही चल रहा है
 
ऐसे ही चल रहा है
 
 
उस जंगल में
 
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बताती है तुम्हारी कविता
 
बताती है तुम्हारी कविता
 
 
कि सपनों को जोड़ कर बुनते हो एक तारा
 
कि सपनों को जोड़ कर बुनते हो एक तारा
 
 
और उसे समुद्र में डुबो देते हो।
 
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23:28, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

तुम्हारी कविता से जानती हूँ
तुम्हारे बारे में
तुम सोचते क्या हो ,
कैसा बदलाव चाहते हो
किस बात से होते हो आहत;
किस बात से खुश

तुम्हारा कोई बायोडटा नहीं मेरे पास
फिर भी जानती हूँ मैं
तुम्हें तुम्हारी कविताओं से

क्या यह बडी़ बात नही कि
नहीं जानती तुम्हारा देश ,
तुम्हारी भाषा तुम्हारे लोग
मैं कुछ भी नहीं जानती ,
फिर भी कितना कुछ जानती हूँ
तुम्हारे बारे में

तुम्हारे घर के पास एक
जगल है
उस में एक झाड़ी
है अजीब
जिस में लगता है
एक चाँद-फल रोज
जिसके नीचे रोती है
विधवाएँ रात भर
दिन भर माँजती है
घरों के बर्तन
बुहारती हैं आकाश मार्ग
कि कब आएगा तारन हार
ऐसे ही चल रहा है
उस जंगल में

बताती है तुम्हारी कविता
कि सपनों को जोड़ कर बुनते हो एक तारा
और उसे समुद्र में डुबो देते हो।