"चान्दमारी / नरेन्द्र जैन" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: नरेन्द्र जैन की पांच कविताएं चांदमारी चांदमारी एक खास जगह होती ह…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | नरेन्द्र जैन | + | {{KKGlobal}} |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=नरेन्द्र जैन | |
− | + | }} | |
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | चान्दमारी एक ख़ास जगह होती है | ||
+ | जहाँ खड़े किये गये नकली पुतलों को | ||
गोली मारी जाती है | गोली मारी जाती है | ||
+ | |||
कोई न कोई होता ही है | कोई न कोई होता ही है | ||
निशाने की जद में | निशाने की जद में | ||
+ | |||
इधर कला और संस्कृति और साहित्य के | इधर कला और संस्कृति और साहित्य के | ||
प्रभुतासम्पन्न केन्द्र विकसित किये जा रहे | प्रभुतासम्पन्न केन्द्र विकसित किये जा रहे | ||
चांदमारी के लिए | चांदमारी के लिए | ||
शिकार की खोज जारी रहती है | शिकार की खोज जारी रहती है | ||
− | + | ख़ास किस्म का वातावरण | |
हवा और धूप भी | हवा और धूप भी | ||
खास कोण से बहती और उतरती | खास कोण से बहती और उतरती | ||
− | एक खास किस्म के वैचारिक | + | एक खास किस्म के वैचारिक सद्भाव पर दिया जाता बल |
प्रकारांतर से एक खास लक्ष्य की ओर रहते अग्रसर | प्रकारांतर से एक खास लक्ष्य की ओर रहते अग्रसर | ||
− | + | ||
− | + | यहाँ जब सम्पन्न होती चांदमारी | |
− | + | गोलियों की आवाज़ें सुनाई नहीं देतीं | |
− | गोलियों की | + | निहायत ही ख़ास ढंग से मारा जाता कोई |
− | निहायत ही | + | |
किसी को आभास तक नहीं होता | किसी को आभास तक नहीं होता | ||
− | और | + | और आँखें निकाल ले जाते वे |
वे इसे नयी दृष्टि का विकसित होना कहते हैं | वे इसे नयी दृष्टि का विकसित होना कहते हैं | ||
+ | |||
वे यकीन नहीं करते | वे यकीन नहीं करते | ||
गोली मार देने जैसे तरीकों में | गोली मार देने जैसे तरीकों में | ||
− | वे भाषा में | + | वे भाषा में सेंध लगाते हैं |
और निर्वासित करते किसी को | और निर्वासित करते किसी को | ||
भाषा के जीवंत कालखंड से | भाषा के जीवंत कालखंड से | ||
पंक्ति 31: | पंक्ति 37: | ||
जिस्म पर नहीं आती कोई खरोंच | जिस्म पर नहीं आती कोई खरोंच | ||
लेकिन बहुत से विचार हताहत होते हैं | लेकिन बहुत से विचार हताहत होते हैं | ||
− | + | ||
+ | यहाँ से गुज़र कर भी | ||
नयी शक्ल में आ रहे | नयी शक्ल में आ रहे | ||
कुछ विचार। | कुछ विचार। | ||
− | + | </poem> | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + |
00:12, 10 नवम्बर 2009 का अवतरण
चान्दमारी एक ख़ास जगह होती है
जहाँ खड़े किये गये नकली पुतलों को
गोली मारी जाती है
कोई न कोई होता ही है
निशाने की जद में
इधर कला और संस्कृति और साहित्य के
प्रभुतासम्पन्न केन्द्र विकसित किये जा रहे
चांदमारी के लिए
शिकार की खोज जारी रहती है
ख़ास किस्म का वातावरण
हवा और धूप भी
खास कोण से बहती और उतरती
एक खास किस्म के वैचारिक सद्भाव पर दिया जाता बल
प्रकारांतर से एक खास लक्ष्य की ओर रहते अग्रसर
यहाँ जब सम्पन्न होती चांदमारी
गोलियों की आवाज़ें सुनाई नहीं देतीं
निहायत ही ख़ास ढंग से मारा जाता कोई
किसी को आभास तक नहीं होता
और आँखें निकाल ले जाते वे
वे इसे नयी दृष्टि का विकसित होना कहते हैं
वे यकीन नहीं करते
गोली मार देने जैसे तरीकों में
वे भाषा में सेंध लगाते हैं
और निर्वासित करते किसी को
भाषा के जीवंत कालखंड से
इस चांदमारी में
जिस्म पर नहीं आती कोई खरोंच
लेकिन बहुत से विचार हताहत होते हैं
यहाँ से गुज़र कर भी
नयी शक्ल में आ रहे
कुछ विचार।