भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हिम्मते-कोताह से दिल तंगेज़िन्दाँ बन गया / आरज़ू लखनवी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आरज़ू लखनवी }} <poem> हिम्मते-कोताह से दिल तंगेज़िन...) |
|||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=आरज़ू लखनवी | |रचनाकार=आरज़ू लखनवी | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatGhazal}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | |||
हिम्मते-कोताह से दिल तंगेज़िन्दाँ बन गया। | हिम्मते-कोताह से दिल तंगेज़िन्दाँ बन गया। | ||
वर्ना था घर से सिवा इस घर का हर गोशा वसीअ़॥ | वर्ना था घर से सिवा इस घर का हर गोशा वसीअ़॥ | ||
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
है यह सब किस्मत की कोताही वगर्ना ‘आरज़ू’। | है यह सब किस्मत की कोताही वगर्ना ‘आरज़ू’। | ||
बढ़के दामाने-तलब से हाथ है उसका वसीअ़॥ | बढ़के दामाने-तलब से हाथ है उसका वसीअ़॥ | ||
− | |||
</poem> | </poem> |
00:28, 10 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
हिम्मते-कोताह से दिल तंगेज़िन्दाँ बन गया।
वर्ना था घर से सिवा इस घर का हर गोशा वसीअ़॥
छोड़ दे दो गज़ ज़मीं, है दफ़्न जिसमें इक गरीब।
है तेरी मश्क़े-ख़िरामेनाज़ को दुनिया वसीअ़॥
है यह सब किस्मत की कोताही वगर्ना ‘आरज़ू’।
बढ़के दामाने-तलब से हाथ है उसका वसीअ़॥