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00:28, 10 नवम्बर 2009 का अवतरण
बहुत सारे व्यंजनों के बाद
मेज़ के अंतिम भव्य सिरे पर रखी थीं
बाजरे की रोटियाँ
मैंने नज़रें बचाते-बचाते
कुछ रोटियाँ उठाईं
एक कुल्हड़ में भरा छाछ का रायता
और समारोह से बाहर एक पुलिया पर आ बैठा
अब मेरे पास
भूख थी
और
एक दुर्लभ कलेवा
मैंने पुलिया पर बैठे-बैठे वर वधू को आशीष दिया
और उस अंधकार की तरफ बढ़ा
जहाँ मेरा घर था।