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"श्रद्धावादी वक़्त में / आर. चेतनक्रांति" के अवतरणों में अंतर

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श्रद्धा का सूर्य शिखर पर था
 
श्रद्धा का सूर्य शिखर पर था
 
 
सबसे ठंडे मौसम में भी जो गर्माती रहती थी भीतर ही भीतर
 
सबसे ठंडे मौसम में भी जो गर्माती रहती थी भीतर ही भीतर
 
 
चपल चापलूसी की चलायमान चांदी गुफ़ा में दहकती थी जो सतत,
 
चपल चापलूसी की चलायमान चांदी गुफ़ा में दहकती थी जो सतत,
 
 
::ठंडी अपराजेय  वह आग
 
::ठंडी अपराजेय  वह आग
 
 
::अपनी नीली लपटों से झुलसाती सृष्टि को
 
::अपनी नीली लपटों से झुलसाती सृष्टि को
 
  
 
कि पिघल बह गया शरीर
 
कि पिघल बह गया शरीर
 
 
शरीर के डबरे में भर गया
 
शरीर के डबरे में भर गया
 
 
बची बस एक आँख तैरती
 
बची बस एक आँख तैरती
 
 
पूछती
 
पूछती
 
 
बोल-बोलकर–
 
बोल-बोलकर–
 
 
कि श्रद्धा से लबालब इस महागार में है कोई सीट खाली
 
कि श्रद्धा से लबालब इस महागार में है कोई सीट खाली
 
 
बैठकर हिलने के लिए
 
बैठकर हिलने के लिए
 
 
दमकते वक्तृत्व की ताल पर
 
दमकते वक्तृत्व की ताल पर
 
 
झमाझम व्यक्तित्व की चाल पर !
 
झमाझम व्यक्तित्व की चाल पर !
 
  
 
कि हम अपने पहलों से थोड़े छोटे
 
कि हम अपने पहलों से थोड़े छोटे
 
 
हम चाहते हैं कि
 
हम चाहते हैं कि
 
 
पहले से छोटी हमारी आज की दुनिया में
 
पहले से छोटी हमारी आज की दुनिया में
 
 
हमें हमारी जगह मिले
 
हमें हमारी जगह मिले
 
  
 
कि कल हम भी
 
कि कल हम भी
 
 
आज के मंच से छोटे
 
आज के मंच से छोटे
 
 
एक मंच के मालिक होंगे
 
एक मंच के मालिक होंगे
 
 
श्रद्धा उपजाने की मशीन से
 
श्रद्धा उपजाने की मशीन से
 
 
कातेंगे वहाँ बैठ अपनी नाप से छोटे कपड़े
 
कातेंगे वहाँ बैठ अपनी नाप से छोटे कपड़े
 
 
अपने बादवालों के लिए
 
अपने बादवालों के लिए
 
  
 
जितनी मेहनत हमने की
 
जितनी मेहनत हमने की
 
 
उससे कम मेहनत करने की सुविधा देंगे
 
उससे कम मेहनत करने की सुविधा देंगे
 
 
अपने अनुजों को
 
अपने अनुजों को
 
 
सिखाएंगे उन्हें इससे भी घोर अनुकरण
 
सिखाएंगे उन्हें इससे भी घोर अनुकरण
 
 
और मनीषा जिसके जेबी संस्करण
 
और मनीषा जिसके जेबी संस्करण
 
 
श्रद्धेय ने हमें दिए
 
श्रद्धेय ने हमें दिए
 
 
उन्हें हम आनेवाले उन जिज्ञासुओं की
 
उन्हें हम आनेवाले उन जिज्ञासुओं की
 
 
उंगलियों पर बटन बनाकर धर देंगे
 
उंगलियों पर बटन बनाकर धर देंगे
 
 
कि वे जब चाहें
 
कि वे जब चाहें
 
 
पा लें अपने पापों के तर्क
 
पा लें अपने पापों के तर्क
 
  
 
सो, हे मानवी मेधा के साकार पुरुष
 
सो, हे मानवी मेधा के साकार पुरुष
 
 
अपने असंख्य खम्भों वाले इस छोटे से दालान में
 
अपने असंख्य खम्भों वाले इस छोटे से दालान में
 
 
हमें बताइए, कि अपनी इन योजनाओं के साथ हम कहाँ बैठें!
 
हमें बताइए, कि अपनी इन योजनाओं के साथ हम कहाँ बैठें!
 
 
  
 
हमें अभिनय करना पड़ता है परवाह का
 
हमें अभिनय करना पड़ता है परवाह का
 
 
बीच बाजार, जब हम पकड़े जाते हैं,
 
बीच बाजार, जब हम पकड़े जाते हैं,
 
 
अपने अगलों को हम देंगे खूब सारा अंधेरा
 
अपने अगलों को हम देंगे खूब सारा अंधेरा
 
 
कि सुस्थ, बाइत्मीनान बैठ वे सोच सकें
 
कि सुस्थ, बाइत्मीनान बैठ वे सोच सकें
 
 
सबसे बकवास किसी मसले पर,
 
सबसे बकवास किसी मसले पर,
 
 
मसलन मसला मालिक के मूड का
 
मसलन मसला मालिक के मूड का
 
 
फसलन फसला फालिक के फूड का
 
फसलन फसला फालिक के फूड का
 
 
हमसे भी ज्यादा सुलभ तुक उन्हें मिले
 
हमसे भी ज्यादा सुलभ तुक उन्हें मिले
 
 
हर जंग वे जीतें और अंग भी न हिले
 
हर जंग वे जीतें और अंग भी न हिले
 
  
 
आपने हमें दी सूक्तियाँ
 
आपने हमें दी सूक्तियाँ
 
 
हम उन्हें दें कूक्तियाँ।
 
हम उन्हें दें कूक्तियाँ।
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00:38, 10 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

श्रद्धा का सूर्य शिखर पर था
सबसे ठंडे मौसम में भी जो गर्माती रहती थी भीतर ही भीतर
चपल चापलूसी की चलायमान चांदी गुफ़ा में दहकती थी जो सतत,
ठंडी अपराजेय वह आग
अपनी नीली लपटों से झुलसाती सृष्टि को

कि पिघल बह गया शरीर
शरीर के डबरे में भर गया
बची बस एक आँख तैरती
पूछती
बोल-बोलकर–
कि श्रद्धा से लबालब इस महागार में है कोई सीट खाली
बैठकर हिलने के लिए
दमकते वक्तृत्व की ताल पर
झमाझम व्यक्तित्व की चाल पर !

कि हम अपने पहलों से थोड़े छोटे
हम चाहते हैं कि
पहले से छोटी हमारी आज की दुनिया में
हमें हमारी जगह मिले

कि कल हम भी
आज के मंच से छोटे
एक मंच के मालिक होंगे
श्रद्धा उपजाने की मशीन से
कातेंगे वहाँ बैठ अपनी नाप से छोटे कपड़े
अपने बादवालों के लिए

जितनी मेहनत हमने की
उससे कम मेहनत करने की सुविधा देंगे
अपने अनुजों को
सिखाएंगे उन्हें इससे भी घोर अनुकरण
और मनीषा जिसके जेबी संस्करण
श्रद्धेय ने हमें दिए
उन्हें हम आनेवाले उन जिज्ञासुओं की
उंगलियों पर बटन बनाकर धर देंगे
कि वे जब चाहें
पा लें अपने पापों के तर्क

सो, हे मानवी मेधा के साकार पुरुष
अपने असंख्य खम्भों वाले इस छोटे से दालान में
हमें बताइए, कि अपनी इन योजनाओं के साथ हम कहाँ बैठें!

हमें अभिनय करना पड़ता है परवाह का
बीच बाजार, जब हम पकड़े जाते हैं,
अपने अगलों को हम देंगे खूब सारा अंधेरा
कि सुस्थ, बाइत्मीनान बैठ वे सोच सकें
सबसे बकवास किसी मसले पर,
मसलन मसला मालिक के मूड का
फसलन फसला फालिक के फूड का
हमसे भी ज्यादा सुलभ तुक उन्हें मिले
हर जंग वे जीतें और अंग भी न हिले

आपने हमें दी सूक्तियाँ
हम उन्हें दें कूक्तियाँ।