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"अगर सफ़र में मेरे साथ मेरा यार चले / आलोक श्रीवास्तव-१" के अवतरणों में अंतर
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तवाफ़ करता हुआ मौसमे-बहार चले। | तवाफ़ करता हुआ मौसमे-बहार चले। | ||
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लगा के वक़्त को ठोकर जो ख़ाकसार चले, | लगा के वक़्त को ठोकर जो ख़ाकसार चले, | ||
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यक़ीं के क़ाफ़िले हमराह बेशुमार चले। | यक़ीं के क़ाफ़िले हमराह बेशुमार चले। | ||
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नवाज़ना है तो फिर इस तरह नवाज़ मुझे, | नवाज़ना है तो फिर इस तरह नवाज़ मुझे, | ||
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कि मेरे बाद मेरा ज़िक्र बार-बार चले। | कि मेरे बाद मेरा ज़िक्र बार-बार चले। | ||
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ये जिस्म क्या है, कोई पैरहन उधार का है, | ये जिस्म क्या है, कोई पैरहन उधार का है, | ||
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यहीं संभाल के पहना,यहीं उतार चले। | यहीं संभाल के पहना,यहीं उतार चले। | ||
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ये जुगनुओं से भरा आस्माँ जहाँ तक है, | ये जुगनुओं से भरा आस्माँ जहाँ तक है, | ||
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वहाँ तलक तेरी नज़रों का इक़्तिदार चले। | वहाँ तलक तेरी नज़रों का इक़्तिदार चले। | ||
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यही तो इक तमन्ना है इस मुसाफ़िर की, | यही तो इक तमन्ना है इस मुसाफ़िर की, | ||
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जो तुम नहीं तो सफ़र में तुम्हारा प्यार चले। | जो तुम नहीं तो सफ़र में तुम्हारा प्यार चले। | ||
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तवाफ़=परिक्रमा; इक़्तिदार= प्रभुत्व | तवाफ़=परिक्रमा; इक़्तिदार= प्रभुत्व | ||
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01:00, 10 नवम्बर 2009 का अवतरण
अगर सफ़र में मेरे साथ मेरा यार चले,
तवाफ़ करता हुआ मौसमे-बहार चले।
लगा के वक़्त को ठोकर जो ख़ाकसार चले,
यक़ीं के क़ाफ़िले हमराह बेशुमार चले।
नवाज़ना है तो फिर इस तरह नवाज़ मुझे,
कि मेरे बाद मेरा ज़िक्र बार-बार चले।
ये जिस्म क्या है, कोई पैरहन उधार का है,
यहीं संभाल के पहना,यहीं उतार चले।
ये जुगनुओं से भरा आस्माँ जहाँ तक है,
वहाँ तलक तेरी नज़रों का इक़्तिदार चले।
यही तो इक तमन्ना है इस मुसाफ़िर की,
जो तुम नहीं तो सफ़र में तुम्हारा प्यार चले।
शब्दार्थ :
तवाफ़=परिक्रमा; इक़्तिदार= प्रभुत्व