भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मैत्रेयी / आलोक श्रीवास्तव-२" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-२
 
|रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-२
 +
|संग्रह=वेरा, उन सपनों की कथा कहो! / आलोक श्रीवास्तव-२
 
}}
 
}}
<poem>  
+
{{KKCatKavita}}
 
+
<Poem>
 
....और तब  
 
....और तब  
 
याज्ञवल्क्य के वन की ओर बढ़े  
 
याज्ञवल्क्य के वन की ओर बढ़े  

10:39, 10 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

....और तब
याज्ञवल्क्य के वन की ओर बढ़े
कदमों को रोक कर
मैत्रेयी ने कहा -
'ज्ञान का अमरत्व दें मुझे'

ॠषि ठहर गये

मैत्रेयी आज भी रोको ॠषि को

प्रकृति से पूछो
इतिहास से और समय से मांगो
ज्ञान का अमरत्व

मैत्रेयी
फिर ठुकरा दो
ज्ञान के एवज में
संसार भर की
धन-संपदा !