भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तुम्हारी आशंसा में / आलोक श्रीवास्तव-२" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=वेरा, उन सपनों की कथा कहो! / आलोक श्रीवास्तव-२ | |संग्रह=वेरा, उन सपनों की कथा कहो! / आलोक श्रीवास्तव-२ | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
<Poem> | <Poem> | ||
आकाश की हँसी | आकाश की हँसी |
10:50, 10 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
आकाश की हँसी
तुम्हारे शब्द हैं
वल्लरि पर खिले
नये फूल-सी
भाषा है
तुम्हारे नेत्रों के पास
काया में अपनी
आकुल दौड़ती
कितनी नदियों का
प्रवाह तुम बांधे हो
फिर भी तुम
सरल हो इतनी
जितना धूप की फुहारों से भींगा
शरद का एक दिन !