भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कविता से बाहर / उत्पल बैनर्जी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उत्पल बैनर्जी }} <poem> एक दिन अचानक हम चले जाएँगे तु...)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=उत्पल बैनर्जी  
 
|रचनाकार=उत्पल बैनर्जी  
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
 
एक दिन अचानक
 
एक दिन अचानक

11:00, 10 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

एक दिन अचानक
हम चले जाएँगे
तुम्हारी इच्छा और घृणा से भी दूर
किसी अनजाने देश में
और शायद तुम जानना भी न चाहो
हमारी विकलता और अनुपस्थिति के बारे में!

हो सकता है
इस सुन्दर पृथ्वी को छोड़कर
हम चले जाएँ
दूर... नक्षत्रों के देश में
फिर किसी शाम जब
आँख उठाकर देखो
चमकते नक्षत्रों के बीच
तुम शायद पहचान भी न पाओ
कि तुम्हारी खिड़की के ठीक सामने
हम ही हैं!

अपने वरदानों और अभिशापों में बंधे
हम वहीं दूर से तुम्हें देखते रहेंगे
अपना वर्तमान और अतीत लेकर
अपने उदास अकेलेपन में
भाषा और कविता से बाहर
सृष्टि की अन्तिम रात तक
चाहत के आकाश में

उदास और अकेले ....!