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22:37, 10 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
सड़क पर खुली है एक खिड़की
गुलमुहर की छाँव पर सिर रखे
एक बूढ़ा रात आए स्वप्न से
धागे निकालकर चुपचाप बुन रहा है
सालों पहले मरी अपनी औरत का रुग्ण चेहरा
शायद बीत चुकी हो अब तक
उसके संशय की घड़ी
या शायद ख़ुद वह