भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सहानुभूति की मांग / उदय प्रकाश" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह= रात में हारमोनिययम / उदय प्रकाश
 
|संग्रह= रात में हारमोनिययम / उदय प्रकाश
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 
आत्मा इतनी थकान के बाद
 
आत्मा इतनी थकान के बाद
 
 
एक कप चाय मांगती है
 
एक कप चाय मांगती है
 
 
पुण्य मांगता है पसीना और आँसू पोंछने के लिए एक
 
पुण्य मांगता है पसीना और आँसू पोंछने के लिए एक
 
 
तौलिया
 
तौलिया
 
 
कर्म मांगता है रोटी और कैसी भी सब्ज़ी
 
कर्म मांगता है रोटी और कैसी भी सब्ज़ी
 
  
 
ईश्वर कहता है सिरदर्द की गोली ले आना
 
ईश्वर कहता है सिरदर्द की गोली ले आना
 
 
आधा गिलास पानी के साथ
 
आधा गिलास पानी के साथ
 
  
 
और तो और फकीर और कोढ़ी तक बंद कर देते हैं
 
और तो और फकीर और कोढ़ी तक बंद कर देते हैं
 
 
थक कर भीख मांगना
 
थक कर भीख मांगना
 
 
दुआ और मिन्नतों की जगह
 
दुआ और मिन्नतों की जगह
 
 
उनके गले से निकलती है
 
उनके गले से निकलती है
 
 
उनके ग़रीब फेफड़ों की हवा
 
उनके ग़रीब फेफड़ों की हवा
 
  
 
चलिए मैं भी पूछता हूँ
 
चलिए मैं भी पूछता हूँ
 
 
क्या मांगूँ इस ज़माने से मीर
 
क्या मांगूँ इस ज़माने से मीर
 
 
जो देता है भरे पेट को खाना
 
जो देता है भरे पेट को खाना
 
 
दौलतमंद को सोना, हत्यारे को हथियार,
 
दौलतमंद को सोना, हत्यारे को हथियार,
 
 
बीमार को बीमारी, कमज़ोर को निर्बलता
 
बीमार को बीमारी, कमज़ोर को निर्बलता
 
 
अन्यायी को सत्ता
 
अन्यायी को सत्ता
 
 
और व्याभिचारी को बिस्तर
 
और व्याभिचारी को बिस्तर
 
  
 
पैदा करो सहानुभूति
 
पैदा करो सहानुभूति
 
 
कि मैं अब भी हँसता हुआ दिखता हूँ
 
कि मैं अब भी हँसता हुआ दिखता हूँ
 
 
अब भी लिखता हूँ कविताएँ।
 
अब भी लिखता हूँ कविताएँ।
 +
</poem>

23:51, 10 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

आत्मा इतनी थकान के बाद
एक कप चाय मांगती है
पुण्य मांगता है पसीना और आँसू पोंछने के लिए एक
तौलिया
कर्म मांगता है रोटी और कैसी भी सब्ज़ी

ईश्वर कहता है सिरदर्द की गोली ले आना
आधा गिलास पानी के साथ

और तो और फकीर और कोढ़ी तक बंद कर देते हैं
थक कर भीख मांगना
दुआ और मिन्नतों की जगह
उनके गले से निकलती है
उनके ग़रीब फेफड़ों की हवा

चलिए मैं भी पूछता हूँ
क्या मांगूँ इस ज़माने से मीर
जो देता है भरे पेट को खाना
दौलतमंद को सोना, हत्यारे को हथियार,
बीमार को बीमारी, कमज़ोर को निर्बलता
अन्यायी को सत्ता
और व्याभिचारी को बिस्तर

पैदा करो सहानुभूति
कि मैं अब भी हँसता हुआ दिखता हूँ
अब भी लिखता हूँ कविताएँ।