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किसका शव / उदय प्रकाश

3 bytes added, 18:48, 10 नवम्बर 2009
{{KKRachna
|रचनाकार=उदय प्रकाश
|संग्रह= रात में हारमोनियम हारमोनिययम / उदय प्रकाश
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{{KKCatKavita}}<poem>
यह किसका शव था यह कौन मरा
 
वह कौन था जो ले जाया गया है निगम बोध घाट की ओर
 
कौन थे वे पुरुष, अधेड़
 
किन बच्चों के पिता जो दिखते थे कुछ थके कुछ उदास
 
वह औरत कौन थी जो रोए चली जाती थी
 
मृतक का कौन-सा मूल गुण उसके भीतर फाँस-सा
 
गड़ता था बार-बार
 
क्या मृतक से उसे वास्तव में था प्यार
 
स्वाभाविक ही रही होगी, मेरा अनुमान है, उस स्वाभाविक मनुष्य की मृत्यु
 
एक प्राकृतिक जीवन जीते हुए उसने खींचे होंगे अपने दिन
 
चलाई होगी गृहस्थी कुछ पुण्य किया होगा
 
उसने कई बार सोचा होगा अपने छुटकारे के बारे में
 
दायित्व उसके पंखों को बांधते रहे होंगे
 
उसने राजनीति के बारे में भी कभी सोचा होगा ज़रूर
 
फिर किसी को भी वोट दे आया होगा
 
उसे गंभीरता और सार्थकता से रहा होगा विराग
 
सात्विक था उसका जीवन और वैसा ही सादा उसका सिद्धान्त
 
उसकी हँसी में से आती होगी हल्दी और हींग की गंध
 
हाँलाकि हिंसा भी रही होगी उसके भीतर पर्याप्त प्राकृतिक मानवीय मात्रा में
 
वह धुन का पक्का था
 
उसने नहीं कुचली किसी की उंगली
 
और पट्टियाँ रखता था अपने वास्ते
 
एक दिन ऊब कर उसने तय किया आख़िरकार
 
और इस तरह छोड़ दी राजधानी
 
मरने से पहले उसने कहा था...परिश्रम, नैतिकता, न्याय...
 
एक रफ़्तार है और तटस्थता है दिल्ली में
 
पहले की तरह, निगम बोध के बावजूद
 
हवा चलती है यहाँ तेज़ पछुआ
 
ख़ासियत है दिल्ली की
 
कि यहाँ कपड़ों के भी सूखने से पहले
 
सूख जाते हैं आँसू।
</poem>
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