"जुज़ तेरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
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|रचनाकार=अहमद फ़राज़ | |रचनाकार=अहमद फ़राज़ | ||
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+ | <poem> | ||
+ | जुज़ तेरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे | ||
+ | तू कहाँ है मगर ऐ दोस्त पुराने मेरे | ||
+ | तू भी ख़ुश्बू है मगर मेरा तजस्सुस बेकार | ||
+ | बर्क़-ए-आवारा की मानिन्द ठिखाने मेरे | ||
− | + | शमा कि लौ थी के वो तू था मगर हिज्र की रात | |
− | + | देर तक रोता रहा कोई सिरहाने मेरे | |
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− | शमा कि लौ थी के वो तू था मगर हिज्र की रात | + | |
− | देर तक रोता रहा कोई सिरहाने मेरे | + | |
− | ख़ल्क़ की बेख़बरी है के मेरी रुसवाई | + | ख़ल्क़ की बेख़बरी है के मेरी रुसवाई |
− | लोग मुझ को ही सुनाते हैं फ़साने मेरे | + | लोग मुझ को ही सुनाते हैं फ़साने मेरे |
− | लुट के भी ख़ुश हूँ के अश्कों से भरा है दामन | + | लुट के भी ख़ुश हूँ के अश्कों से भरा है दामन |
− | देख ग़ारतगरे दिल ये भी ख़ज़ाने मेरे | + | देख ग़ारतगरे दिल ये भी ख़ज़ाने मेरे |
− | आज इक और बरस बीत गया उस के बग़ैर | + | आज इक और बरस बीत गया उस के बग़ैर |
− | जिस के होते हुए होते थे ज़माने मेरे | + | जिस के होते हुए होते थे ज़माने मेरे |
− | काश तू भी मेरी आवाज़ सुनता हो | + | काश तू भी मेरी आवाज़ सुनता हो |
− | फिर पुकारे है तुझे दिल की सदा ने मेरे | + | फिर पुकारे है तुझे दिल की सदा ने मेरे |
− | काश तू भी कभी आजाये मसीहाई को | + | काश तू भी कभी आजाये मसीहाई को |
− | लोग आते हैं बहुत दिल को दुखाने मेरे | + | लोग आते हैं बहुत दिल को दुखाने मेरे |
− | काश औरों की तरह मैं भी कह सकता | + | काश औरों की तरह मैं भी कह सकता |
− | बात सुन ली है मेरी आज ख़ुदा ने मेरे | + | बात सुन ली है मेरी आज ख़ुदा ने मेरे |
− | तू है किस हाल में ऐ ज़ूदफ़रामोश मेरे | + | तू है किस हाल में ऐ ज़ूदफ़रामोश मेरे |
− | मुझको तो छीन लिया अहद-ए-वफ़ा ने मेरे | + | मुझको तो छीन लिया अहद-ए-वफ़ा ने मेरे |
− | चारागर यूँ तो बहुत हैं मगर ऐ जान-ए-"फ़राज़" | + | चारागर यूँ तो बहुत हैं मगर ऐ जान-ए-"फ़राज़" |
− | जुज़ तेरे और कोई ग़म न जाने मेरे < | + | जुज़ तेरे और कोई ग़म न जाने मेरे |
+ | </poem> |
17:36, 11 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
जुज़ तेरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे
तू कहाँ है मगर ऐ दोस्त पुराने मेरे
तू भी ख़ुश्बू है मगर मेरा तजस्सुस बेकार
बर्क़-ए-आवारा की मानिन्द ठिखाने मेरे
शमा कि लौ थी के वो तू था मगर हिज्र की रात
देर तक रोता रहा कोई सिरहाने मेरे
ख़ल्क़ की बेख़बरी है के मेरी रुसवाई
लोग मुझ को ही सुनाते हैं फ़साने मेरे
लुट के भी ख़ुश हूँ के अश्कों से भरा है दामन
देख ग़ारतगरे दिल ये भी ख़ज़ाने मेरे
आज इक और बरस बीत गया उस के बग़ैर
जिस के होते हुए होते थे ज़माने मेरे
काश तू भी मेरी आवाज़ सुनता हो
फिर पुकारे है तुझे दिल की सदा ने मेरे
काश तू भी कभी आजाये मसीहाई को
लोग आते हैं बहुत दिल को दुखाने मेरे
काश औरों की तरह मैं भी कह सकता
बात सुन ली है मेरी आज ख़ुदा ने मेरे
तू है किस हाल में ऐ ज़ूदफ़रामोश मेरे
मुझको तो छीन लिया अहद-ए-वफ़ा ने मेरे
चारागर यूँ तो बहुत हैं मगर ऐ जान-ए-"फ़राज़"
जुज़ तेरे और कोई ग़म न जाने मेरे