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{{KKRachna|रचनाकार: [[=परवीन शाकिर]][[Category:कविताएँ]]|संग्रह=[[Category:परवीन शाकिर]]}}{{KKCatGhazal}}<poem>अपनी रुसवाई तेरे नाम का चर्चा देखूँ एक ज़रा शेर कहूँ और मैं क्या-क्या देखूँ
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~नींद आ जाये तो क्या महफ़िलें बरपा देखूँ आँख खुल जाये तो तन्हाई की सहरा देखूँ
अपनी रुसवाई तेरे नाम का चर्चा देखूँ <br>शाम भी हो गई धुँधला गई आँखें भी मेरीएक ज़रा शेर कहूँ और भूलनेवाले मैं क्या क्या कब तक तेरा रस्ता देखूँ <br><br>
नींद आ जाये तो क्या महफ़िलें बरपा देखूँ <br>सब ज़िदें उस की मैं पूरी करूँ हर बात सुनूँ आँख खुल जाये तो तन्हाई एक बच्चे की सहर तरह से उसे हँसता देखूँ <br><br>
शाम भी हो गई धुंधला गई आँखें भी मेरी <br>मुझ पे छा जाये वो बरसात की ख़ुश्बू की तरह भूलनेवाले मैं कब तक तेरा रस्ता अंग-अंग अपना उसी रुत में महकता देखूँ <br><br>
सब ज़िदें उस की मैं पूरी करूँ हर बात सुनूँ <br>एक बच्चे की तू मेरी तरह से उसे हँसता यक्ता है मगर मेरे हबीब जी में आता है कोई और भी तुझ सा देखूँ <br><br>
मुझ पे छा जाये वो बरसात की ख़ुश्बू की तरह <br>मैं ने जिस लम्हे को पूजा है उसे बस एक बारअंग-अंग अपना उसी रुत ख़्वाब बन कर तेरी आँखों में महकता उतरता देखूँ <br><br>
तू मेरी तरह से यक्ता है मगर मेरे हबीब <br>जी में आता है कोई और भी तुझ सा देखूँ <br><br> मैं ने जिस लम्हे को पूजा है उसे बस एक बार <br>ख़्वाब बन कर तेरी आँखों में उतरता देखूँ <br><br> तू मेरा कुछ नहीं लगता है मगर जान-ए-हयात <br>जाने क्यों तेरे लिये दिल को धड़कता देखूँ <br><br/poem>
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