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"अब कौन से मौसम से / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर
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ज़रदाई हुई रुत को हरा रंग पिलाए | ज़रदाई हुई रुत को हरा रंग पिलाए | ||
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और मस्त हवा रक़्स की लय तेज़ कर जाए | और मस्त हवा रक़्स की लय तेज़ कर जाए | ||
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हर लहर के पावों से लिपटने लगे घूँघरू | हर लहर के पावों से लिपटने लगे घूँघरू | ||
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अंगूर की बेलों पे उतर आए सितारे | अंगूर की बेलों पे उतर आए सितारे | ||
रुकती हुई बारिश ने भी क्या रंग दिखाए | रुकती हुई बारिश ने भी क्या रंग दिखाए | ||
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20:11, 11 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
अब कौन से मौसम से कोई आस लगाए
बरसात में भी याद जब न उनको हम आए
मिटटी की महक साँस की ख़ुश्बू में उतर कर
भीगे हुए सब्जे की तराई में बुलाए
दरिया की तरह मौज में आई हुई बरखा
ज़रदाई हुई रुत को हरा रंग पिलाए
बूँदों की छमाछम से बदन काँप रहा है
और मस्त हवा रक़्स की लय तेज़ कर जाए
शाखें हैं तो वो रक़्स में, पत्ते हैं तो रम में
पानी का नशा है कि दरख्तों को चढ़ जाए
हर लहर के पावों से लिपटने लगे घूँघरू
बारिश की हँसी ताल पे पाज़ेब जो छंकाए
अंगूर की बेलों पे उतर आए सितारे
रुकती हुई बारिश ने भी क्या रंग दिखाए