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<b>भारतेंदु हरिश्चंद्र बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने साहित्य के क्षेत्र में अनेक नवीन प्रयोग किये। ऐसा ही एक प्रयोग था - शब्दों के स्थान पर अंकों का प्रयोग। एक उदाहरण प्रस्तुत है:-</b>
करि वि४ देख्यौ बहुत जग बिन २स न १।
तुम बिन हे विक्टोरिये नित ९०० पथ टेक॥
तुम ३१ ब में बड़ीं ताते बिरच्यौ छंद।
तुव जस परिमल ।।। लहि, अंक चित्र हरिचंद॥
<b>अब ज़रा उपरोक्त रचना को पुन: पढ़ें:-</b>
करि विचार देख्यौ बहुत जग बिन दोस न एक।
तुम बिन हे विक्टोरिये नित नव सौ पथ टेक॥
हती न तुम पर सैन लै असी कहत करि सौंह।
पै बिनसात प्रताप-बल सत्रु मरोरै भौंह॥
सोते रहते लोग सब बिलसत रहत सचैन।
अग्या रहती जागती पै सब छन दिन-रैन॥
सखि तुव मुख छबि ससि सबै कैसो रहत अनंद।
निहचै सत्ता ईस की तुम में परम अमंद॥
जिमि बामन के पद तरे चौदह लोक लखात।
तिमि भुव तुम अधिकार मोहि बिस्वे बीस जनात॥
इक सठ खल नहिं राज में पची सबन की बाय।
तासों गायो सुजस तुव कवि षट-पद गाय॥
किये खरब बल अरब के तनिकहिं भौंह मरोर।
चालि सकी नहिं अरिन की, सैन-सैन लखि तोर॥
तुव पद पद्म प्रताप को करत सुकवि पिक रोर।
करत कोटि बहु लक्ष करि, होत तऊ अति थोर॥
तुम इकती सब में बड़ीं ताते बिरच्यौ छंद।
तुव जस परिमल पौन लहि, अंक चित्र हरिचंद॥
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