भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बुलावा / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परवीन शाकिर |संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:34, 12 नवम्बर 2009 का अवतरण
मैंने सारी उम्र
किसी मंदिर में क़दम नहीं रक्खा
लेकिन जब से
तेरी दुआ में
मेरा नाम शरीक हुआ है
तेरे होंठो की जुम्बिश पर
मेरे अन्दर की दासी के उजले तन में
घंटियाँ बजती रहती हैं