भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दिन भले ही बीत जाएँ क्वार के / उमाकांत मालवीय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उमाकांत मालवीय |संग्रह= }} Category:गीत दिन भले ही बीत जाएँ ...)
 
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=  
 
|संग्रह=  
 
}}
 
}}
[[Category:गीत]]
+
{{KKCatKavita}}
 
+
{{KKCatNavgeet}}
 +
<poem>
 
दिन भले ही
 
दिन भले ही
 
 
बीत जाएँ क्वार के
 
बीत जाएँ क्वार के
 
 
पर नहीं बीते अभी दिन ज्वार के
 
पर नहीं बीते अभी दिन ज्वार के
 
  
 
अभी मैं सागर
 
अभी मैं सागर
 
 
अभी तुम चंद्रमा हो
 
अभी तुम चंद्रमा हो
 
 
बिछ गई, मेरी लहर पर
 
बिछ गई, मेरी लहर पर
 
 
चंदरिमा हो
 
चंदरिमा हो
 
 
अभी तो हैं सिलसिले त्यौहार के
 
अभी तो हैं सिलसिले त्यौहार के
 
 
रातरानी और हरसिंगार के
 
रातरानी और हरसिंगार के
 
  
 
अभी तो घर बार
 
अभी तो घर बार
 
 
घर की सौ नियामत
 
घर की सौ नियामत
 
 
अभी सीता की रसोई
 
अभी सीता की रसोई
 
 
है सलामत
 
है सलामत
 
 
अभी सारे दिन लगें इतवार के
 
अभी सारे दिन लगें इतवार के
 
 
फुर्सतों के, चुहल के तकरार के
 
फुर्सतों के, चुहल के तकरार के
 
  
 
अभी है सम्बन्ध में
 
अभी है सम्बन्ध में
 
 
ख़ासी हरारत
 
ख़ासी हरारत
 
 
छेड़खानी, चुटकियाँ
 
छेड़खानी, चुटकियाँ
 
 
मीठी शरारत
 
मीठी शरारत
 
 
अभी पत्ते हरे वन्दनवार के
 
अभी पत्ते हरे वन्दनवार के
 
 
परिजनों के भेंट भर अकवार के
 
परिजनों के भेंट भर अकवार के
 +
</poem>

20:24, 13 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

दिन भले ही
बीत जाएँ क्वार के
पर नहीं बीते अभी दिन ज्वार के

अभी मैं सागर
अभी तुम चंद्रमा हो
बिछ गई, मेरी लहर पर
चंदरिमा हो
अभी तो हैं सिलसिले त्यौहार के
रातरानी और हरसिंगार के

अभी तो घर बार
घर की सौ नियामत
अभी सीता की रसोई
है सलामत
अभी सारे दिन लगें इतवार के
फुर्सतों के, चुहल के तकरार के

अभी है सम्बन्ध में
ख़ासी हरारत
छेड़खानी, चुटकियाँ
मीठी शरारत
अभी पत्ते हरे वन्दनवार के
परिजनों के भेंट भर अकवार के