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कवि: [[उमाकांत मालवीय]]{{KKGlobal}}[[Category: पल्लू की कोर दाब दाँत के तले]]{{KKRachna[[Category: |रचनाकार=उमाकांत मालवीय]] ~*~*~*~*~*~*~*~ }}{{KKCatKavita}}{{KKCatNavgeet}}<poem>
पल्लू की कोर दाब दाँत के तले
 
कनखी ने किये बहुत वायदे भले ।
 
 
कंगना की खनक
 
पड़ी हाथ हथकड़ी ।
 
पाँवों में रिमझिम की बेडियाँ पड़ी ।
 
 
 
सन्नाटे में बैरी बोल ये खले,
 
हर आहट पहरु बन गीत मन छले ।
 
 
नाजों में पले छैल सलोने पिया,
 
यूँ न हो अधीर,
 
तनिक धीर धर पिया ।
 
 
 
बँसवारी झुरमुट में साँझ दिन ढले,
 आऊँगी मिलने में मैं पिय दिया जले ।</poem>
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